पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३२४

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निरपवाद रूपमें मंद शक्तिवाले और अधश्रद्धालु लोगोंकी होती हैं । अन्हें तो और किसीसे ज्यादा जरूरत किसी रास्ता बतानेवालेकी होती है।" रामकृष्ण-विवेकानन्द, तोतापुरी-रामकृष्ण, शंकर-गौड़पादाचार्यक होते हुआ भी!! यह तारनहार कौन है ? "No teacher can give what is not existent in a latent state, he can only waken that which is asleep, he can liberate what is imprisoned and bring to light what has, been concealed. They never give anything, they merely set free that which is in us. . . . It is a superstition to believe that the Saviours as such, as definite human beings, are saviours. They were only releasers of certain qualities, they were effective as the pure embodiment of their ideal.... Weak men feel happy in seeing in the great soul of another their own natures adequately expressed at last, as it were in a mirror. A great man shows men what everyone could be, what all men are at bottom, in spirit and in truth." "कोभी भी गुरु जैसी कोी चीज नहीं दे सकता, जो भी हस्ती न रखती हो । जो सो रहा है असे वह सिर्फ जगा सकता है, बन्धनमें पड़े हुओको मुक्त कर सकता है, जो छिपा हुआ है असे वह प्रकाशमें ला सकता है । वे कभी नयी चीज नहीं देते । हममें जो कुछ मौजूद है, असे वे बन्धनमुक्त करते हैं । . . . यह मानना वहम है कि तारनहार माने जाने वाले आदमी मनुष्यकी हैसियतसे सचमुच तारनहार थे । . खास गुणोंका अस्कर्ष दिखानेवाले थे । अपने आदर्शोकी शुद्ध मूर्तिके रूपमें वे असर डालनेवाले माने जाते हैं। . . . कमजोर मनुष्योंको, जैसे अपना प्रतिबिम्ब दर्पणमें पड़ता है वैसे ही दूसरी महान आत्माओंमें अपने स्वभावका प्रतिबिम्ब पड़ता दिखायी देता है, तो बहुत अच्छा लगता है । . . . महापुरुष तो दूसरे आदमियोंको दिखा देते हैं कि हरक आदमी सुनके जैसा हो सकता है । वे बता देते हैं कि मनुष्य मात्र आत्माके रूपमें, सत्यके रूपमें कैसा है 1" बापूके बारेमें यह कितना सच है ! बौद्ध धर्मके बारेमें वह कहता है कि वह राष्ट्रीय प्रकृतिके माफिक नहीं था, अिसलिले नहीं टिक सका। मगर यह नहीं कह सकता कि सीसामी और अिस्लाम धर्म हिन्दुस्तानमें कैसे टिके हैं ! सुषुप्त अवस्थामें वे तो कुछ .