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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३२९

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, टुकड़ा जैसा होगा, जिसमें कितनी ही कबरें न होंगी । मगर अिन कत्रों के पत्थरोंको अिज्जतके साथ बचाकर किसान अपना हल चलाता है। जमीनके साथ अितना बँधा हुआ और मानों जमीनका ही हो गया हो, जैसा किसान मैंने दुनियामें और कहीं नहीं देखा। बापदादोंसे चली आ रही जमीन पर असका सारा जीवन गुजरता है और वहीं असकी मौत होती है। मनुष्य जमीनका है, जमीन मनुष्यकी नहीं। जमीन अपनी सन्तानोंको छोड़ती ही नहीं। आदमियोंकी तादाद कितनी ही बढ़े, मगर वे सब असी जमीन पर रहते हैं। ज्यादा मेहनत करके, अधिक कष्ट अठाकर वे कुदरतसे अपनी खुराक ले लेते हैं। और मरते हैं तब वालोचित श्रद्धाके साथ असी जमीनमें, जिसे वे अपनी माँका पेट समझते हैं, प्रवेश कर जाते हैं और सदाके लिओ वहीं रहते हैं। जिन्हें हम मरे हुओ मानते हैं अन्हें चीनी किसान प्राचीन कालके यूनानियोंकी तरह जीवित मानते हैं। वे मानते हैं कि हमारी जमीनमें ही हमारे पूर्वजोंकी आत्मा रहती है। और वह आत्मा अन्हें अपनी मेहनतका फल देती है, और वे कोशी दोष करते हैं तो असकी सजा भी देती है । जिस प्रकार विरासतमें मिले हुओ खेत ही अनका अितिहास, अनकी स्मृति और अनके संस्मरण हैं । वे अिसी जमीनके अक अंग हैं. .." जापानकी कलाके बारेमें बात करते हुझे सुरुचिकी व्याख्या अच्छी दी गयी-है: 'An all-embracing religion and philosophy which denies nothing can only originate from the Asiatic attitude to the world; it alone makes a perfect social organization possible in principle; only the man endowed with the Asiatic's feeling for the world will possess taste in the highest sense. For what else is taste but clear consciousness of proportion? The man whose eyes have been trained in Japan will only rarely want to open them in Europe. How barbaric is our habit of overloading? How seldom does an object stand in the place which correlation appoints to it. How obtrusive our pictures are? And how rarely is a European aware that a room exists for the man, and not vice versa, that he, and not the curtain of the picture is to be given his best possible setting ? A Japanese temple is designed in its setting, it cannot in. fact be dissociated from it. ... It is characteristic that the Japanese loses his taste as he assumes European manners and European dress," 66 as soon