पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३३२

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practised on living beings is always evil, every act of vio- lence as such is a blow in the face of justice, and the most just execution or penalty offends the moral sense in some way or the other. And yet, somehow sometimes it is pos- sible to realize the beneficial quality of what is evil in itself, not only in small matters, but even on a great scale. History teaches that the most violent tribes have often developed into cultured nations with the highest moral outlook. Physical superiority is only durable upon a moral basis. Without courage strength achieves nothing, without readiness for sacrifice discipline, organization, even courage is of no avail." " यह पक्की बात है कि जिस दुनियाके व्यवहारमें बुरामीका भी निश्चित और जरूरी स्थान है । जड़से नयी रचना करनेको रास्ता विनाशसे ही तैयार होता है। हमें कुछ बड़ी प्रगति करनी हो तो अत्पत्ति और विनाशके कुदरती क्रमको कभी कभी वेग देना ही चाहिये । पुरानी कठोर बनी हुभी चीजोंको विप्लव ही झुड़ा दे सकता है। युद्ध कितने ही युगोंका असमयमें अन्त करता है; अिसी तरह बन्धनकारक रूढ़ियोंका फन्दा कट सकता है। अगर अक जातिके लोगोंने दूसरी जातिको पराधीन बनाकर कितनी ही चीजें घने जंगलसे बाहर न निकाली होती, तो जगद्व्यापी संस्कृतियाँ पैदा ही न होतीं। मौत और बरबादी कुदरतका स्वाभाविक सिलसिला है । . . . हिन्दुस्तानके पुराणों के अनुसार सृष्टि और प्रलय अक ही देवताके अक दूसरेके पूरक स्वरूप माने गये हैं, जिसमें बहुत सत्य है । कभी कभी विनाशको साफ तौर पर जरूरी माना गया है । हाँ, अिस महादेवकी जगह मनुष्यको नहीं ले लेनी चाहिये । महादेव जो कर सकते है, असे करनेकी अिच्छा मनुष्यको न रखनी चाहिये । मृत्यु अनिवार्य है अिसलिओ हत्याका समर्थन नहीं किया जा सकता । जैसे जन्म और मरण अिन्सानकी अपनी अिच्छाके क्षेत्रसे बाहरकी चीजें है, वैसे ही जीव- मात्रके विकासकी तमाम योजना व्यक्तिगत निर्णयसे परे है । परन्तु अिन्सानको जो करना चाहिये वह शायद ही करता है । और जब जान बूझकर कुछ भी करने लगता है, तब तो जो करना चाहिये वह शायद ही कर सकता है। यह मान कर कि वह सारी योजना जानता है जब वह ओक खास परिणाम पैदा करना चाहता है तब असे बिगाड़ता ही है। अिसीसे मूर्खताभरी लड़ालियाँ और प्रलयकारी विप्लव पैदा होते हैं । कुदरतका अपना चलाया हुआ क्रम बदल जाता है और मूर्खताकी जीत होती है। गोरे लोगोंने अिसी तरह बहुत बहुत दिशाओंमें भयानक बरबादी मचायी है। किसी भी प्राणीकी हिंसा करना बुरामी ही 1