है । हिंसाका हर अक काम न्यायको चोट पहुंचाता है । किसीको कितनी ही नियमानुसार सजा दी जाय, तो भी वह नीतिकी भावनाको तो किसी न किसी प्रकार आघात पहुँचाती ही है । यह सब कुछ होने पर भी यह माना जा सकता है कि बुराीमेंसे भलाजी निकल सकती है । छोटी छोटी बातोंमें ही नहीं, मगर बड़े पैमाने पर भी यह सम्भव है। अितिहासमें हम देखते हैं कि बहुत ही हिंसक जातियाँ भी; बहुत धूचे सदाचारकी दृष्टिसे संस्कारी बन कर निकली हैं । शारीरिक बल नैतिक बुनियाद पर ही टिक सकता है । हिम्मतके बिना अकेली ताकत कुछ नहीं कर सकती । और त्याग करनेकी तैयारीके बिना अनुशासन, संगठन और हिम्मतसे भी कुछ नहीं होता।" अमरीकी लोकतंत्रका अक वाक्यमें अच्छा चित्र दिया है : “The universal franchise has recalled to life the right of physical might in a refined form; through playing upon moods and instincts, through suggestion and the mechanical result of clever intrigues, it is now being decided who is to govern, and this method of arriving at a decision differs from the method of the days of robber knights, precisely as seduction differs from violation." "सार्वलौकिक मताधिकारसे 'जिसकी लाठी उसकी भैस' वाला नियम संस्कृत रूपमें सजीवन हुआ दीखता है। लोगोंके आवेग और रुखका फायदा झुठाकर और सुझाव तथा चालाकी भरे दावचसे यह तय किया जाता है कि किसके हायमें सत्ता आयेगी । बलात्कार और फुसलाहटमें जितना फर्क है अतना ही फर्क लुटेरे सरदारोंकी सत्तामें और अिस ढंगसे हथियात्री हुी सत्तामें है । सारी पुस्तक विचारोंको अत्तेजन देनेवाली (thought compelling) है, और जितनी निश्चिन्ततासे लिखी गयी है अतनी ही निश्चिन्ततासे असे पढ़ना और असका विवेचन करना चाहिये । आज अर्विन पर हॉर्निमैनका लेख है । अिसने असे चालाक मौका- परस्त बताया है। “Agile opportunist who endeavours to cover his inconsis- tencies and change of principle and policy with a thick veneer of unctuous rectitude and hypocritical professions of sincerity." " यह चालाक अवसरवादी है। अपनी असंगतताओं तथा सिद्धान्तों और नीतिक परिवर्तनोंको सच्चेपनके आग्रह और सचामीके दम्भी स्वाँगके मोटे पर्देके नीचे ढंकना चाहता है।" - ३१०
पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३३३
दिखावट