-- SC " लम्बे समयसे चली आ रही रूदि विरोध तो करेगी, मगर अच्छे संस्कारोंसे असे दवा दिया जा सकेगा।" "शरीरमें रहनेवाला पशुत्व सिर झुठायेगा, मगर आत्माके प्रभावसे असे मार गिराया जा सकेगा। "पुराना साँप असे झुकसायेगा और तुझे बार बार सतायेगा, मगर प्रार्थनाके जोरसे असे भगाया जा सकेगा । फिर अपयोगी कामसे असे पास आनेसे रोका जा सकेगा। वायूने कल मेजरसे पूछा था कि " यहाँ कोी अर्दू पढ़ानेवाला मिल सकता है या नहीं ?" अन्होंने कहा. "हाँ, छावनीमें २८-७-३२ जरूर होंगे, अंग्रेजोंको हिन्दुस्तानी पकानेवाले ।" बापू बोले. "मैं जेलके भीतरवालोंकी बात करता हूँ। मेजर " यह समझ लीजिये कि यहाँ मुझसे ज्यादा अच्छी अर्दु जाननेवाला कोी नहीं है |" अन्हें पता लग गया कि ये कैदियोंमेंसे किसी भुई जाननेवालेको माँगेंगे । अिसलि) पहलेसे ही यह जवाब दे दिया । बापू बोले- मगर आपको क्या रोका जा सकता है?" वे कहने लगे जरूर | सब कठिनाअियाँ लिखकर रख लिया करें और मुझसे पूछ लिया करें " आज निरीक्षणका दिन था, अिसलि वे चले जानेकी जल्दीमें थे । बापूने कहा क्या आज आपको थोड़ा रोका जा सकता है ?" अन्होंने कहा "हाँ, नौ बजे बाद मुझे कुछ भी काम नहीं है । मैं नौ बजे तक अिस तरफकी कोठरियाँ पूरी करके आ जाभुंगा ।" आये । बापू अल्फ़ारूकमेंसे शब्द निकालकर पूछने लगे और वे घबराने लगे । जैसे तैसे कुछ शब्द समझाये, कुछ नहीं समझाये और अन्तमें कहने लगे " यह तो मेरे बृतेसे बाहरकी बात है। आप कहें तो रोज ये शन्द बेलबीसे पूछ लाया करूँ । बापू- ." मगर मैं अिस कितावको छोड़ नहीं सकता, क्योंकि जब समय मिलता है तभी पढ़ लेता हूँ।" वादमें अपने घरसे अक झुई लुगत भेजनेको कह गये । आज आभमकी ढेरों डाक आयी। दो घण्टे पढ़ने में लगे। 'मॉडर्न रिव्यू के पिछले अंक रोज घूमनेके वक्त पढ़े जाते हैं । मी मासके २९-७-०३२ अंकमें Our misunderstanding (हमारी गलतफहमी) नामका अक बहुत जानकारीसे भरा हुआ लेख पढ़ा, जिसमें यह विषय था कि पश्चिमी सभ्यता पूर्व यानी हिन्दुस्तान, चीन और अिस्लामकी कितनी ऋणी है । India in England' (अिंग्लैण्डमें हिन्दुस्तान) नामक जॉन अर्नशॉका लेख निहायत सच्चा, बढ़िया पृथक्करणसे भरा हुआ और सच्ची. 66 ३२७
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