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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३४७

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हालतका हूबहू और बारीक निरीक्षणवाला मालूम हुआ। अिस आदमीसे विलायतमें मिले होते तो कैसा अच्छा होता ! बाहरसे ढोलकी आवाज सुनामी दी। बापू कहने लगे. "ये ढोल किस पातके बजते होंगे?" वल्लभभाभी कहने लगे "जेलमें ही बज रहे हैं!" " किसीकी शादी होगी?” मैंने पेट्रिक पिअर्सकी बात कही, जिसकी फाँसी चढ़नेसे पहले शादी हुी थी । बापने कहा वह स्त्री धन्य पर यह जरूर जानना चाहूँगा कि अब वह क्या कर रही है । तुम्हें विलायतमें किसीसे पूछना था कि वह क्या कर रही है?" बाप्प बोले - आज नाडकर्णीका अद्भुत किया हुआ श्लोक बापूने झुद्धृत किया : वृक्षाञ् छित्वा पशुन् हत्वा कृत्वा रुधिरकर्दमम् । ३०-७-३२ यद्येवं गम्यते स्वर्ग नरकं केन गम्यते ॥ भिस पर वल्लभभाभी कहने लगे " मुसलमान तो यह मानते ही हैं । " अिस परसे श्रद्धानन्द और राजपाल वगैरा की बात निकली, और अन्तमें भोलानाय और असके कारकुनोंकी । ये बेचारे तो बिलकुल अकारण अत्यंत निर्दोष मारे गये, क्योंकि अिनका विचार तो अपनी पुस्तकमें मुहम्मदका जीवन देकर सेवा करनेका था। उन्होंने गेब्रिअलकी तस्वीर भी किसी पुराने चित्र परसे ली थी । जिस पर बापूने दक्षिण अफ्रीकाका अपने पर बीता हुआ किस्सा सुनाया । बापने वाशिंगटन अर्विंगका लिखा मुहम्मदका जीवनचरित्र पढ़ा और अन्होंने मुसलमानोंकी सेवा करनेके लिओ 'सिंडियन ओपीनियन में अनकी समझमें आनेवाली सरल भाषामें असका अनुवाद देना शुरू किया । अक दो प्रकरण आये होंगे कि मुसलमानोंका सख्त विरोध शुरू हो गया । अभी पैगम्बरके बारेमें तो कुछ आया ही न था । पैगम्बरके जन्मके सेमयकी अरबस्तानकी मूर्तिपूजा और वहमों और दुराचारोंका वर्णन या । यह भी भिन लोगोंको बर्दाश्त न हुआ । बापूने कहा " यह तो ग्रंथकारने प्रस्तावनाके तौर पर कहा है । भिन सबका सुधार करनेको पैगम्बरका अवतार हुआ ।" मगर कोभी सुने ही नहीं । हमें अंसा जीवन चरित्र नहीं चाहिये, नहीं चाहिये! बस अगले प्रकरण लिखे हुओ थे अनका कम्पोज किया हुआ था, सब रद्द किया । बादमें बापूने यह और कहा कि “वेचारे भोलानायने तो चित्र निकाल डाला और चाहे हुओ सुधार कर दिये तब भी असकी जान न बच सकी ! अिसके बाद अमीर- अलीका Spirit of Islam (भिस्लमका हार्द) गुजरातीमें देनेकी अिच्छा थी और अक मुसलमान दोत्तने छपाीके लिअ रुपया दे दिया था, फिर भी यह विचार ही छोड़ दिया था!" ३२८