पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३५३

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आज सुबह जरा सूरज निकला कि सब चादरों वगैराको हवा लगानेकी बापूने हिदायत की। फिर अक किस्सा सुनाया । यह २-८-३२ हिदायत देते समय अन्हें डरबनके डॉ. नानजीकी स्कॉच स्त्रीकी याद आयी जो बहुत बढ़िया धोबन थी । रोज कपड़े नहीं धोती या साबुन न लगाती, तो भी अन्हें हवा अच्छी तरह लगाती थी। बापूने कहा कि असने हवा लेगानेका गुण समझाया । यह कह कर यह किस्सा सुनाया कि डॉ. नानजीके यहाँ बाको रखा था और आपरेशन कराया था "अिसे वा की सहनशक्तिका अद्भुत नमूना कहा जा सकता है । गर्भाशयका स्क्रपिंग करवाना - असे छिलवाना या । बाका दिल कमजोर था, भिसलिले बेहोशीकी दवा शायद सहन न कर सके, अिस कारण बिना दवा (घाये ही आपरेशन किया ।" बाप दूर खड़े थे। वे खुद धून रहे थे । अस भागमें औजार डालकर चौड़ा करके चीरा लगानेकी तड़तड़ सुनामी देती थी। बाके मुंह पर तो दुःख दिखायी देता यो, मगर मुंहसे अफ नहीं की । बापू कहने लगे "मैं कहता जाता था कि देखना, हिम्मत न हारना । मगर मैं खुद काँप रहा था, मुझसे वह देखा नहीं जाता था।" मैंने बापूसे कहा "अिसे तो सहनशक्तिका चमत्कार कहना चाहिये ।" बापू कहने लगे "हाँ, जिसमें समय भी काफी लगा था और चीख मारने जैसी बात थी । मगर बाने अद्भुत सहनशीलता दिखाओ ! असी ही हिम्मत असने बीफ-टी न लेकर दिखाओ । वह कहती थी कि मरना हो तो भले ही मर जा, मगर असी चीज लेकर मुझे जीना नहीं है।" शामको बापूने पूछा की ६१वीं जन्मगाँठ किस दिन है, भला?" वल्लभभाभी " क्यों, क्या काम है ? आपको कुछ लिखना है ?" यापू "हाँ, लिखना तो है ही । औरोंको लिखते हैं तो असीने स्या कमर किया है।" वल्लभभाी "कोी आपसे पूछे, आपसे कुछ माँगे तब आप लिग्य मेजें तो दूसरी बात है। नहीं तो आप यहाँ जेलमें बैठे हैं, आपको लिखनेकी क्या जरूरत?" यापू “यह कैसे? की रचनाओंका में बहुत अचा दर्जा है । लेखकोंमें ये पहले दूसरे माने जाते हैं।" वल्लभमाी थोड़ी देर चुप रहे । यादमें कहने लगे "माने जाते होंगे।" यापू " होंगे कैसे ? है।" वल्लभमानी मालूम हो गया, मालूम हो गया, अब । असे नामर्द आदमोको लिग्नकर असे प्रोत्साहन क्यों दिया जाय ? देशमें जब दावानल जल रहा है, तब यहाँ के बेटे लेख लिये जाने होंगे?" .