पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३५४

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66 - 1 . बापू क्या आप यह कहते हैं कि भिनके लेखोंसे सेवा नहीं होती ?" वल्लभभाभी " विद्वानोंके लेखोंसे जरा भी सेवा नहीं होती । विद्वान पढ़ने लिखनेका शौक लगाते हैं और असा करके अलटा नुकसान पहुंचाते हैं । लोगोंको पढ़ने लिखनेके मोहमें डालकर निकम्मे बनाते हैं । जो निकम्मे बनावें वह विद्या और लेख किस कामके?" बापू "क्या सचमुच के लेखोंके बारेमें असा कहा जाता है ? मैंने सुनका लिखा का जीवनचरित्र नहीं पढ़ा, मगर क्या यह जीवनचरित्र मनुष्यको निकम्मा बनायेगा ?" वल्लभभाी " लोग जिनका लिखा हुआ दूसरोंका चरित्र पढ़ेंगे या निका चरित्र देखेंगे?" बापू- "अिनका चरित्र क्या बुरा है ? आपको मालूम होगा कि १९१६- १७में विलिंग्डनने लड़ाीके सिलसिले में टाअन हॉलमें सभा की थी, असमें सबसे लहाीमें मदद देनेकी अपील की, गयी थी। तिलक दलने अिस तरहका संशोधन पेश करनेका निश्चय किया कि कुछ खास शर्तों पर मदद दी जा सकती है। नहीं तो सभा छोड़कर चले जानेका फैसला किया था। जिस दलकी तरफसे खड़े हुओ । सबने खूब छीछी करनेकी कोशिश की, मगर वे अटल खड़े रहे और जो कहना था वह सब कहनेके बाद सब सभासे गये।" वल्लभभाभी -" ओहो ! यह नाटक तो अन्हें करना आता है !" वापू " तो आप अनसे क्या चाहते हैं ?" वल्लभभाभी कुछ त्याग तो करें या नहीं? बापू क्या जेलमें आयें तभी त्याग माना जाय?" वल्लभभाभी - मैं यह नहीं कहता । मगर मैं अन्हें जानता हूँ, आप नहीं जानते । अिसलिओ क्या कहूँ ? वे तो कमसे कम त्याग और ज्यादासे ज्यादा लाभको मानते हैं।" बापू " हाँ, यह तो झुनका तत्वज्ञान है।" वल्लभभाभी “यही तो है। आग लगे अिस तत्वज्ञानको ! अपनी तरफसे कमसे कम त्याग, लोग तो कितने ही बर्बाद हो जायें और अपने लिअ ज्यादासे ज्यादा लाभ ।" बापू " देखना, मैं यह सब सुनसे कहूँगा हाँ !" वल्लभभाभी " सुनके मुँह पर सब बातें कह सकता हूँ और कही भी हैं। में सब अिकठे हुओ थे। वहाँ सब कहने लगे कि तो हट जानेवाले हैं। मैंने कहा : काहेके हटनेवाले हैं ? हटनेका हक ही क्या है ? सार्वजनिक " - .