$$ ही मृत्युसे होनेवाले स्मरणोंसे आनन्द क्यों नहीं होना चाहिये ? मेरी वेचैनी मगनलालकी मौतसे भी कुछ ज्यादा है। कारण अितना ही है कि मैं बाहर होता, तो अिस परिवारको अच्छी तरह सँभाल लेता । मगर यह भी गलत ही है । यह अपंग हालत ठीक क्यों न हों ?" डॉक्टरके अदात्त गुणोंको याद करके अनका तर्पण किया । अस्थर मेननने, जो हिन्दुस्तानके बारेमें की भाषण दे रही है और अच्छा असर डाल रही है, अक लम्बे खतमें बाप, कागावा और अल्बर्ट इवाभीत्सरके बारेमें लिखकर बापूसे पूछा था कि दुनियामें भाओचारेकी भावनाके प्रचारके लिओ जब असे समर्थ पुरुष मौजूद हैं, तो भी प्रचार क्यों नहीं होता ? असे बापूने लिखा : Brotherhood is just now only a distant aspiration. To me it is a test of true spirituality. All our prayers, fasting and observances are empty nothings so long as we do not feel a live kinship with all life. But we have not even arrived at that intellectual belief, let alone a heart realiza- tion. We are still selective. A selective brotherhood is a selfish partnership. Brotherhood requires no consideration or response. If it did, we could not love those whom we consider as vile men and women. In the midst of strife and jealousy, it is a most difficult performance. And yet true religion demands nothing less from us. Therefore each one of us has to endeavour to realize this truth for ourselves irrespective of what others do." " बंधुभाव अभी तो दूरका सपना है । सच्ची आध्यात्मिकताकी मुझे यह कसोटी मालूम होती है । जब तक जीव मात्रके साथ अकता महसूस न हो, तब तक प्रार्थना, अपवास, जपतप सब थोथी बातें हैं। मगर अभी तक तो हमने यह चीज बुद्धिसे भी नहीं मानी। फिर हृदयके साक्षात्कारकी तो बात ही क्या ? अभी तो हम अच्छे बुरे देखने लगते हैं। अच्छे लोग आपसमें भाजीचाग कर लें तो यह स्वार्थी मण्डल हुआ। बंधुभावमें किसी तरहका हिसाब नहीं लगाया जाता, वापस जवान मिलनेकी जरूरत नहीं होती। अगर हम असे भेदभाव करने लगेंगे तो जिन्हें हम दुष्ट आदमी मानते हैं, अन स्त्री-पुरुषोंके साथ प्रेमभाव नहीं रख सकते । आजकलके कलह और रागद्वेषके बीच जैसा करना बहुत कठिन है । फिर भी सच्चा धर्म तो हमसे यही माँग रहा है । अिसलिओ हममेंसे हरओकको, दूसरे क्या करते हैं जिसका विचार किये बिना, भिस सचामीका साक्षात्कार करनेकी कोशिश करनी चाहिये ।" ३४०
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