पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- को लिखा. " तुम्हारे दुःखमें मैं नहीं मिलेगा । तुम्हारी पत्नी तो . दुःखसे छूटी है । असकी मृत्यु जैसे वस्तमें और असे ढंगसे हुभी है कि औD करने लायक है। तुम अपने को अनाथ हुआ क्यों मानते हो? अनाय तो अपनेको वही समझ सकता है, जिसके सिर पर, मीश्वर न हो। मगर ीश्वर तो सभीके सिर पर है। यानी हम घोर अज्ञानके कारण अपनेको अनाथ मानते हैं। तुम्हारा कवच न मणि थी और न तुम्हारी पत्नी । ये सब झूठे कवच हैं, सच्चा कवच हमारी श्रद्धा है। मनुष्यशरीरकी हस्ती काँचके कंगनसे भी बहुत कम है। काँचका कंगन जतनके साथ रखनेसे सैकड़ों बरस तक चल सकता है। मनुष्यका शरीर कितना भी जतन किया जाय, तो भी अक खास हदसे आगे जा ही नहीं सकता; और अस मर्यादाके भीतर भी चाहे जब नष्ट हो सकता है। भैसी चीज पर भरोसा क्या किया जाय ? तुम आश्रमके काममें डूब जाओ। अिघर सुधरका विचार ही न करो । छह बरसकी मंगलाकी चिन्ताकी बात ही नहीं । तुम खुद असे अच्छी तरह सँभालो । शान्ति और जयकुंवरको सँभाल रखना सिखाओ । तुम शायद नहीं जानते होगे कि रूखीवहन बिलकुल बच्ची थी, तबसे संतोकके जीते जी भी मगनलालके हाथों पली थी। जिसके जीनेकी शायद ही आशा थी । मुश्किलसे साँस ले सकती थी। जिस लड़कीको मगनलाल नहलाते, बाल संवारते और पास बैठकर खिलाते थे और अपने दूसरे बच्चोंकी भी देखभाल करते थे। फिर भी नौकरीमें सबसे ज्यादा काम करते थे । सुन्दरसे सुन्दर बाड़ी अन्हींने बनाभी थी। फिनिक्समें पहला गुलावका फूल अन्हींने अगाया था । फिनिक्सकी कितनी ही सख्त जमीनमें जब सुनकी कुदालीकी चोट पड़ती थी, तब धरती काँपती मालूम होती थी । जो मगनलाल कर सके वह सब तुम कर सकते हो । जिसमें मैंने कहीं भी मगनलालकी बड़ी कलाशक्ति या सुनके पढ़े लिखेपनकी बात नहीं कही है । मगनलालमें आत्मविश्वास था । अपने कामके बारेमें श्रद्धा थी । और भगवानने अन्हें बलबान शरीर दिया था । यह शरीर अन्तमें आश्रमके बोझसे. और झुनकी तपश्चर्यासे कमजोर हो गया था। लेकिन मैं यह मानता हूँ कि मगनलालने अपने छोटेसे जीवनमें सौ वर्षके बराबर या सैकड़ों बरस जितना काम किया । मगनलालकी मिसाल तुम्हारे सामने अिसलिझे रखी है कि तुम मगनलालको जानते थे और अनके प्रेमभावके कारण तुम्हारा आश्रमसे सम्बन्ध हुआ या । मगनलालको याद करके भी भूल जाओ कि तुम अपंग हो या अन्धेरेमें हो । मैं मानता हूँ कि जो सुविधायें तुम्हें सहज ही मिली हुी हैं, वे जिस देशमें लाखोंमें अकको भी प्राप्त न होंगी।" को लिखा हमारे खयालसे उपयोगी अद्योग सब अच्छे हैं और करने लायक हैं। जिस प्रकार चमारका काम, बढ़ीका काम, पाखानोंका ३४७