रहा हूँ। बाकी वैसे मुझे कुछ असा भान हुआ हो कि ' अरे आज तो कोअी नया अनुभव हुआ,' सो बात तो मेरे जीवनमें ही नहीं है जैसे हमारे बाल बिना जाने बढ़ते हैं, वैसे ही मैं मानता हूँ कि मेरा आध्यात्मिक जीवन बढ़ा है।" " नामके जपसे पापहरण अच्छी तरह होता है। शुद्ध भावसे नाम जपनेवालेको श्रद्धा होती ही है । वह अिस निश्चयके साथ शुरू करता है कि नामजपसे पाप दूर होते ही हैं। पाप दूर होना यानी आत्मशुद्धि होना । श्रद्धाके साथ नाम लेनेवाला कभी थकता तो है ही नहीं। अिसलिमे जो बात जीभसे होती है, वह अन्तमें हृदयमें अतरती है और अससे शुद्धि होती है । यह अनुभव निरपवाद है । मानसशास्त्री भी मानते हैं कि मनुष्य जैसा विचारता है, वैसा बन जाता है। रामनामकी बात भी अिसीके अनुसार है । नामके जप पर मेरी श्रद्धा अटूट है। नामजपको खोजनेवाला अनुभवी था। और मेरी पक्की राय है कि यह खोज बहुत ही महत्वपूर्ण है । बेपढ़ोंके लिझे भी शुद्धिका द्वार खुला होना चाहिये । यह काम नामजपसे होता है, (गीता, ९/२२; १०/१०)। माला वगैरा अकाग्र होनेके और गिनती करनेके साधन हैं ।" " विद्याभ्यास सेवाके लिओ ही हो । मगर सेवामें अटूर आनन्द है, अिसलि यह कहा जा सकता है कि विद्या आनन्दके लिअ है । औसा नहीं जाना गया कि आज तक कोमी सेवाके विना सिर्फ साहित्यविलाससे अखण्ड आनन्द भोग सका हो । " दुनिया अनादि कालसे औसी की जैसी ही चली आ रही है, तो सुधरेगी कब ?" जिस प्रश्नके पूछनेवालेको लिखा आपका पत्र मिला। मेरा अनुभव यह बताता है कि यह विचार करनेके बजाय कि सारी दुनिया अक ही तरहसे कैसे चले, यही विचार करना चाहिये कि हम कैसे अकसे चलें। हमें तो यह भी पता नहीं कि संसार अलटा चलता है या सीधा । परन्तु हम सीधे चलेंगे, तो दूसरे भी हमें सीधे ही मालूम होंगे या सीधा करनेका ढंग मालूम हो जायगा । आत्माको जाननेका अर्थ है शरीरको भूल जाना यानी शून्य बन जाना। जो शून्य बन गया है, असने आत्माको पहचान लिया है ।" को लिखा- की लाश देखने गयी यह अच्छा किया। अिस हालतमें हम सबको किसी दिन पहुँचना है और यह अिच्छा होनी चाहिये कि वहाँ पहुंचनेका समय आये तब हम खुश होकर यह घर छोडें । जहाँतक हो सके असे साफ, पवित्र और तन्दुरस्त रखें । मगर जाय तब जाने दें । यह हमें बरतनेके लिझे मिला है । देनेवालेको जब ले जाना हो तब खुशीसे ले जाय । हमें असका झुपयोग भी सेवाके लिये ही करना है, अपने भोगोंके लिअ नहीं।" ३४६
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