" पाओमें जो वहाँ दत्तचित्त न हो सके, अनके लिओ यह दवा है : बाहरकी दुनियाको बिलकुल भूल जायें । जैसे चोला छोड़कर जानेवाला जीव अगर मनुम्य जगत्में जी रखता है तो असे बुरी गति मिलती है और वह खुद दुःख पाता और दूसरोंको दुःख देता है, वैसे ही कैदीको समझना चाहिये । वह बाहरकी दुनियाका विचार ही न करे, क्योंकि असकी तो · सांसारिक मौत (Civil death) हो गयी है। और सांसारिक मृत्यु पाया हुआ मनुष्य संसारमें जी रखता है तो पागल जैसा लगता है। और अपने आसपास वालोंको भी पागल बना देता है । यह जो मैं लिख रहा हूँ सो नयी बात नहीं है। बनियन अगर बाहरका विचार करता, तो वह अपना अमरग्रंय नहीं लिख सकता था। लोकमान्य गीता रहस्य' नहीं लिख सकते थे।" भाश्री भुस्कुटेने (मुलाकातमें ) पहले तो धार्मिक चर्चा कर ही ली थी; टॉस्टॉय पढ़ कर अन्होंने ज्यादा प्रश्न पूछे । टॉल्स्टॉय अपनी आत्मकयामें लिखते हैं: "'I speak of a personal God, whom I do not acknow- ledge for the sake of convenience of expression. There are two Gods. There is the God people generally believe in, a God who has to serve them sometimes in a very refined way; perhaps merely by giving them peace of mind. This. God does not exist. But the God whom we all have to serve, does exist and is the prime cause of our existence and of all we perceive.' “मैं सगुण भीश्वरकी बात कर रहा हूँ। अपने विचारोंको प्रगट करनेकी मुविधाके लिझे मैं कहता हूँ कि मैं असे नहीं मानता । दो औश्वर माने जाते है । येक वह जिसे आम तौर पर लोग मानते हैं, जो लोगोंकी सेवा करता है - कभी कभी तो बहुत ही अच्छी तरह और शायद अन्हें मनकी शांति देकर करता है । असे मीश्वरकी हस्ती नहीं है । मगर वह भीदवर जिसकी सेवा हम समीको करनी है हस्ती रखता है । हमारी इस्तीका और हमें जो कुछ दिखाभी देता है अस सबका वही मूल कारण है ।' "अिनमेंसे आप कौनसे भीश्वरको मानते हैं ? मैं तो दूसरेको मानता हूँ और असके मिल जानेके बाद प्रार्थना वगैरा बाहरी आचार सय फजूल हो जाता है।"
जिस सवालके जवायमें बापूने हिन्दीमें लिलवाया: "में दोनों मीदवगेको मानता हूँ, जिसके पाससे हम सेवा लेते हैं और जिसकी हम सेवा करते हैं । असा तो हो नहीं सकता कि हम संवा करें और किसी प्रकारकी सेवा न लेवें । -