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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३७८

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। - . लेकिन दोनों मीदवर काल्पनिक हैं। असके नजदीक तो वही चीज सच्ची है । जो ीश्वर सचमुच है वह कल्पनातीत है । वह न सेवा करता है, न सेवा लेता है । असके लिअ कोजी विशेषण भी नहीं है, क्योंकि भीश्वर कोसी बाह्य शक्ति नहीं है, लेकिन वह हमारे भीतर ही है । और क्योंकि हम जानते नहीं हैं कि अीश्वर किस तरहसे काम करता है, अिसलि कल्पनातीत शक्तिका स्मरण करना ही चाहिये । और जब हमने स्मरण किया वैसे ही हमारा कल्पनामय भीदवर पैदा हुआ । अन्तमें बात यह है कि आस्तिकता बुद्धिका प्रयोग नहीं है, वह श्रद्धाकी बात है । वुद्धिका सहारा बहुत कम अिस बातमें मिल सकता है । और जब हमने अीश्वरको माना तब विश्वके व्यवहारकी बातका झगड़ा जाता है, क्योंकि पीछे हमको मानना होगा कि मीश्वरकी कोसी कृति बगैर हेतु नहीं हो सकती है । अिससे आगे नहीं जा सकता हूँ।" आचारः प्रथमो धर्मः सूत्र अद्भुत करके अक भाीने अिसका रहस्य पूछा । असको जवावमें लिखा : “ आचारका अर्थ केवल बाह्याचार है और बाहरी आचार समय समय पर बदला जा सकता है। भीतरी आचरण हमेशा अक ही हो सकता है यानी सत्य, अहिंसा वगैरा पर कायम रहना; और अिस पर कायम रहते हुझे बाह्याचारको जहाँ जहाँ बदलना पड़े वहाँ बदला जा सकता है। शास्त्रमें कहा है कि आचार प्रथम धर्म है, यह कह कर या मान कर किसी चीज पर डटे रहने की जरूरत नहीं हो सकती । संस्कृतमें दिये हुआ सभी विचार कोमी शास्त्र नहीं हैं । मानव धर्मशास्त्रके नामसे पहचाना जानेवाला अन्य भी सचमुच शास्त्र नहीं है । शास्त्र पुस्तकोंमें लिखी हुी चीज नहीं है। वह जीवित वस्तु होनी चाहिये । अिसलि चारित्रवान ज्ञानी या जिसके कहने और करने में मेल है असका कथन हमारा शास्त्र है; और असी कोी मशाल हमारे हाथमें न हो तब अगर हमें संस्कार मिले हों, तो हमें जो सत्य मालूम हो वही हमारा शास्त्र है।" प्रार्थना और ब्रह्मचर्यका सम्बन्ध : अक भाीने कहा कि प्रार्थनाके साथ आप ब्रह्मचर्य पर जोर क्यों नहीं देते रहते ? अन्हें जवावमें लिखा : "प्रार्थना और ब्रह्मचर्य अक ही तरहकी चीजें नहीं है। ब्रह्मचर्य पाँच महावतोंमेंसे अक है । प्रार्थना असे पानेका अक साधन है। ब्रह्मचर्यकी जरूरतके . बारेमें मैंने बहुत कहा है, बहुत समझाया है । मगर यह विचार करने पर कि असे किस तरह साधा जाय जवावमें अक प्रार्थना ही बड़ा साधन मिला है । जो प्रार्थनाका मूल्य जान सकता है और मूल्य जाननेके बाद प्रार्थनामें तल्लीन हो सकता है, असके लिअ ब्रह्मचर्य आसान हो जाता है।" ३५९

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