पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३७९

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आदर्श डॉक्टरके बारेमें ." मेरा आदर्श डॉक्टर वह है, जो अपने पेशेका अन्छा ज्ञान प्राप्त कर ले और अस ज्ञानका झुपयोग जनताको मुफ्तमें दे। अपने गुजरके लिओ या तो वह कोजी मामूली धन्धा कर ले, या जनता जो कुछ थोड़ा बहुत दे दे अससे अपना निर्वाह कर ले; मगर असे अपने कामकी फीस कभी न माने । आदर्श स्थितिमें मैं असे सेवकोंका सालाना वेतन मुकर्रर कर दूँ और असके सिवा वे अमीर गरीब किसीसे कुछ भी नहीं ले सकते " अिन्हीके दूसरे प्रश्नोंके अत्तरमें -----" जहाँ तक मैं समझा हूँ जपयशका अर्थ नामस्मरण है। "मिताहारकी मात्रा मुकर्रर करना मुश्किल है। अल्पाहारकी मात्रा आसानीसे नियत की जा सकती है। क्योंकि अल्पाहारका मतलब है जरूरतसे निश्चयपूर्वक कम खाना; और यही पसन्द करने लायक है । "जो सत्यका पालन करना चाहता है, असके पास गुप्त रखने जैसा अक भी विचार न होना चाहिये । बुरेसुरे विचार भी दुनिया जान ले तो चिन्ता न होनी चाहिये । फिक्र तो बुरेसुरे विचारोंकी होनी चाहिये, पापकी होनी चाहिये । मेरी डायरी कोभी देख लेगा अिस डरकी जड़में तो यह बात है कि हम जैसे हैं अससे अच्छे दिखामी दें । और जो आदमी सारी दुनिया असकी डायरी देख ले तो भी परवाह न करे, वह अपनी बीसे तो छिपाये ही कैसे? "व्रतकी मयादा हमारी अशक्ति हो सकती है । जब तक मित्र मित्रके बीच भी मैं और तुका भेद है, और यह भेद पति पत्नीके सम्बन्धमें भी होता ही है और शरीरधारीके लिखे अनिवार्य है, तब तक अक दूसरेकी चीज मिजाजतके बिना हरगिज न ली जाय । असी जगह पर रख देनेका निश्चय अिसमें मददगार नहीं है। अिसका अक बड़ा कारण यह है कि खुद निश्चय करनेवालेको कहाँ पता है कि दूसरे ही क्षण वह जियेगा या नहीं, या असके कम्जेमें आ जानेके बाद अस चीजको कोसी अठा ले जायगा या नहीं । बिस नियमका पालन करनेमें कोमी भेड़चालका या अिससे भी बुरा आरोप लगाये, तो वह सहन करने योग्य है।" . , आज बापूने मित्र तर्पणमें ही ज्यादातर समय लगाया, यह कहा जा सकता है। डॉ. मेहताके अन्तकालके बाद पैदा होनेवाली १६-८-३२ झालनकी समस्या हल करनेके लिये कमी पत्र लिखे। जिन पत्रों का विवेचन येकार है। मगर मिन सब पत्रोंमें प्रतिपादित