पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३८८

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मैंने कहा बापू आशा अिसलि रख सकते हैं कि विलायतमें भी मिस मामले में अिनके विचार अलग हो रहे थे। वैसे तो क्या पता ?" वल्लभभाभी "चिन्तामणिने जिस बार अच्छी तरह शोभा बहामी ।" बापू- क्योंकि चिन्तामणि हिन्दुस्तानी हैं, जब कि सपूका मानस युरोपियन है । चिन्तामणि समझते हैं कि जिस निर्णयमें ही बहुत कुछ विधान आ जाता है । सप्पू यह मानते हैं कि विधान. मिल गया, तो फिर अिन बातोंकी चिन्ता ही नहीं। किसी भी हिन्दुस्तानीको समझानेकी जरूरत नहीं होगी कि कितना ही अच्छा विधान गुण्डोंके हाथमें दे दिया जाय, तो उसकी दुर्गति ही होगी। और अिस निर्णयसे विधान गुण्डोंके ही हायमें दिया जा रहा है। अभी तो केन्द्रीय सरकारका बाकी है। ये केन्द्रीय सरकारको अक धधकता हुआ कुंड बना डालेंगे और कहेंगे कि अब भिसमें पदो और जल मरो।" "मालवीयजी कैसे चुप हैं ?" चापू "मालवीयजीको कुछ कहना ही नहीं होगा । वे शायद सोचते होंगे कि अब अिसमें क्या हो सकता है ? अन्हें मेरे विचारोंका तो पता न होगा, अिसलिझे परेशान हो रहे होंगे।" वल्लभभाभी "आपके साथ यही तो मुसीवत है कि आप अन्त तक कुछ भी मालूम नहीं होने देते और अपने साय वाले आदमियोंकी स्थिति भी बिलकुल विषम बना देते हैं ! आपके खिलाफ आपके साथियोंकी यही शिकायत है। सबका यही अनुभव है कि जिसकी बिलकुल कल्पना नहीं होती असी परिस्थितिमें आप हम सबको डाल देते हैं ।" बापून 'मगर अिसमें क्या हो सकता है ?" वल्लभभाओ -"हमें भी तो कोभी कहेगा न कि तुम साथ थे, तुम किसी भी तरह अिस चीजकी खबर तो बाहर भेज ही सकते थे। डाह्याभाभी हर सप्ताह आते हैं, उनके साथ समाचार भेजे जा सकते थे।" बापू "यह तो कैसे हो सकता है ? क्या हम अिनसे (जेल अधिकारियोंसे) यह कहें कि जाओ, हम तो अब अिस चीजको किसी भी तरह जाहिर कर रहे हैं ? हम उन्हें वचन दे चुके हैं कि हमारी तरफसे यह चीज बाहर न जायगी । यानी काम खतम हुआ। यह आपने पत्रमें नहीं देखा कि मैंने बिलकुल लापरवाहीसे लिखा है कि अिसे प्रकाशित करके लोकमत जाग्रत होने देना हो तो होने दो और प्रकाशित न करो तो भी ठीक है ? मालवीयजी और राजगोपालाचार्यको आज अगर अिस चोजका पता चले, तो वे क्या कर सकते हैं ? थोड़े ही दिनकी तो बात है न ! मेरे खयालसे मालवीयजी और राजाजीको भी अिस बातसे थोड़ा धक्का लगानेकी जरूरत है। राजाजी तो अितनी तेज बुद्धिके हैं कि अन्हें फौरन मालूम हो म-२४