. . हो तो आश्चर्य नहीं । के बारेमें खबर पढ़कर चिन्ता हो रही थी। असके पत्र की बाट देखी । पत्र आया तब सन्तोप हुआ और असे लिखा " तुम्हारे पत्रके बाद कहनेकी कोी बात ही नहीं रह जाती । सच तो यह है कि बादर जो कुछ होता है, असका खयाल तक न करना चाहिये । मगर जब तक अपवार परना चन्द न करूँ या बन्द न हो जाय, तब तक खयाल न करना या न होना असंभव है । मिसीलिझे तुम्हें पूछकर मनको शान्त किया । मेरा पिछला अनुभव बताता है कि जो बात कही असका सार असी वक्त असे भेज देता तो अच्छा होता । परन्तु अब वह करनेकी जरूरत नहीं । भविष्यके लिये शायद यह मुचना अपयोगी हो । ।" सुगतरामको लिया - " तुमने कागज अच्छा लिखा है । हमारी गाडीको चलानेवाला मनुष्य नहीं, श्रीश्वर है । असमें बैठे हुओ हम लोग जब तक अस पर श्रद्धा रखेंगे, तब तक गाली जरूर चलती रहेगी। श्रद्धा छोड़ी कि गाड़ी अश्मी ही समसो।" - आश्रमके यालक कभी कभी सुन्दर सवाल पूछते हैं । जिन्दु पारेखने "क्या कृष्ण भगवानने यह ठीक किया कि शिवडीको आगे करके भीमको मारा और जयद्रयके लिये सूर्यको सुदर्शन चक्रसे ढंक दिया ? अगर ठीक नहीं किया, तो क्या हम अंसे नाटक खेल सकते हैं ?" अिस बालकको हमेशा दो मिन चौड़ी और चार अिब लम्बी जो कतरन लिखी जाती थी, भुसमें 'तेरा सवाल बढ़िया है । महाभारत काव्य है, अितिहास नहीं । महाका अन्य यह बताना है कि मनुष्य अगर हिंसाका गस्ता पकड़ेगा, तो असमें स. शुट आयेगा ही। फिर तो अमसे कृष्ण-जैसे भी नहीं बच सकते । वैसे, युग तो युग हो। और दिशग्यटीको आगे करने और सूर्यको हकनेमें दरको पानी । मेरी यादके अनुसार व्यास ने भी अिन प्रसंगोंका दोपके पर्म की नान किया। में अदाहरणोंवाले नाटकोंमें यह बता दिया जाय कि नाल करने लायक नहीं है, तो शुनके खेलने में शायद दोष गा। सिर भी ने जो प्रभावद बहुत विचार करने योग्य तो है ही।" नामाको किनारमें लिया--"मुझे यह प्रश्न बहुत अच्छा बगा? गटकमा farm टोपली दुग के रूपमें दिग्यानेका हो, तो मुसके iriआनि मानना । भिनने पर भी भिग तरहके नाटक पारो मेरे मना टांटी। जो पुरे काम महापुरुषोंने ~ मी भा गुगको युगके तौरवर ही बयान क्यों न कि- सुन न करने आवश्यar विना असे कामोको
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