पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३८

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. यहाँ अखबार पानेका ठेका वल्लभभामीका है । परते समय अनके अचारणमें बहुत-सी भूलें होती हैं, जिनकी सुन्हें जरा भी परवाह नहीं है । खास तौर पर मद्रासकी तरफके नामोंका अचारण तो किसी भी तरह अनकी जवान पर नहीं चदता । आरोग्य स्वामी मुदालियरको अंग्रेजीमें Arokia Swami लिखा था । वे 'आरोकिया' बोलते थे और मुझे हंसी आती थी । अिस पर चिड़कर कहने लगे " तुम्हें हसी आती मगर जिसमें जो लिखा है वही तो पहूँ न !” बापने कहा मगर वल्लभभाभी, तामिलमें 'क' और 'में फर्क नहीं है।" वल्लभभाीने कहा "लेकिन अंग्रेजीमें तो 'जी' है न? वह क्यों नहीं लिखते ?" कलकत्तेके Royalists (रॉयलिस्ट्स ) के लिये तैयार किया हुआ बेन्थलका खानगी विवरण अखबारमें आया । अस पर अखबारोंकी आलोचना पड़ी जा रही थी। असमें Gandhi's constructive vacuities (गांधीकी रचनात्मक गफलतें ) ये शब्द आये थे। मैंने बापसे पूछा "रचनात्मक गफलत कैसी होती होगी ?" वल्लभभाी कहने लगे आज तुम्हारी दाल जल गयी थी, वैसी। बापू खिलखिला पड़े। नया कुकर आया था । वल्लभभाश्रीको तीन महीनेसे अच्छी दाल नहीं मिली थी। और आज अच्छी दालकी आशा रखते थे। पर यहाँ तो पहले ही दिन पानी कम और आँच ज्यादा होनेके कारण दाल जल गयी थी। अखबार पढ़कर बापू बोले " सब ठीक ही हो रहा है और हम खूब बच गये हैं । बेन्थलके पत्रसे जो कुछ जाहिर हो रहा है --- मुसलमानोंकी परिषदके सब हालचाल अस सबका क्या मतलब है ? हम अन्दर पड़े हैं, यह बिलकुल ठीक ही है।" वल्लभभाभी रोज मजेसे अखबार पढ़ते हैं, बापू दिलचस्पीके साथ सुनते हैं, कुछ नहीं तो यह बताते हैं कि दिलचस्पीसे सुन रहे हैं। कभी कभी बापू कुछ लिखते हों या पढ़ते हों तो वल्लभभाभी रुक जाते हैं। बार बार देखते हैं कि बाप्पू अपना काम पूरा कर चुके या नहीं ? जिस पर बापू कहते हैं- "क्यों वल्लभभाी 'हरे' कहूं क्या? तब आपकी कथा शुरू होगी ? तो अच्छा 'हरे'।" जिस तरह चल रहा है, फिर भी अखबार पढ़ना बापूको बहुत पसन्द नहीं है । मामूली कैदी बाहरकी खबरें पानेके लिये तड़पते हैं, चोरीसे अखबार मँगा सकते हो तो मँगाते हैं। मगर बापूकी भावना अिस मामलेमें बिलकुल दूसरी ही है । अखबार न मिले तो खुशीसे वह समय दूसरे ज्यादा अच्छे काममें लगायें, बल्कि झुनके मिलनेसे बहुत बार अरुचि होती