जिन्हें बापूने सख्त पत्र लिखा : Dear Sister, "I have your letter. Why do you think that the truth lies only in believing in Jesus as you do? Again why do. you think that an Orthodox Hindu cannot follow out the precepts of the Sermon on the Mount? Are you sure of your knowledge of an orthodox Hindu? And then are you sure again that you know Jesus and His teachings ? I admire your zeal but I cannot congratulate you upon your wisdom. My fortyfive years of prayer and meditation have not only left me without the assurance of the type you credit your self with, but have left me humbler than ever. The answer to my prayer is clear and emphatic that God is not encased in a safe to be approached only through a little hole bored in it, but that He is open to be approached through billions of openings by those who are humble and pure of heart. I invite you to step down from your pinnacle where you have left room for none but yousrelf. With love and prayer. Yours, M. K. G." "प्यारी बहन, आपका पत्र मिला । आप यह क्यों मानती हैं कि जिस ढंगसे आप भीसाको मानती हैं उसी तरह मानने में ही सत्य भरा है। और किस लिअ यह मानती हैं कि गिरिप्रवचनके सिद्धन्तोंको सनातनी हिन्दू पालन नहीं कर सकता ? आपको यह विश्वास है कि आप सनातनी हिन्दूका अर्थ अच्छी तरह जानती हैं ? जिससे भी आगे बढ़कर पूछता हूँ कि जीसा और अनके झुपदेशोक अर्थके बारेमें क्या आपको पूरा यकीन है ? आपके अत्साहकी मैं जरूर कदर करता हूँ। मगर आपके ज्ञानके बारेमें आपको बधाी नहीं दे सकता । पैतालीस सालकी प्रार्थना और चिन्तनसे मुझमें तो वह भरोसा पैदा नहीं हुआ है जैसा आपमें है । मैं तो पहलेसे ज्यादा नम्र बना हूँ। मेरी प्रार्थनाका मुझे तो साफ और जोरदार जवाब यह मिला है कि श्रीश्वर भैसी तिजोरीमें बन्द किया हुआ नहीं है, जिसमें किये हुअ अक ही छोटेसे छेदमें से ही वह दखाभी दे सकता हो । वह तो जैसा है जो नम्र और शुद्ध हृदयवालोंको करोड़ों द्वारोंसे दिखाी दे सकता है। आप जिस शिखर पर बैठी हैं और जहाँ आपके सिवा
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