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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/४३०

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प्रार्थना-प्रवचन ४७७ रियासतोंमें भी जो राजा माना जाता है, वह नहीं है। उसको तो वनानेवाले अंग्रेज लोग थे, वे चले गए। वे तो इसलिए उनको राजा- महाराजा बना देते थे, कि उनकी मार्फत राजतंत्र चलता था और राजदंड मिलता था। काश्मीरको अभी अपने यहां प्रजातंत्र स्थापित करना है। इसी तरहसे दुसरी रियासतोंमें भी, हैदरावाद और जूना- गढ़में भी। मेरे नजदीक तो उनमें कोई भेद ही नहीं है। रियासतकी असली राजा तो उसकी प्रजा है। अगर काश्मीरको प्रजा यह कहे कि वह पाकिस्तानमें जाना चाहती है तो कोई ताकत नहीं दुनियामें जो उसको पाकिस्तानमें जानेसे रोक सके। लेकिन उससे पूरी आजादी और पारामके साथ पूछा जाय। उसपर आक्रमण नहीं कर सकते और उसके देहातों- को जलाकर उसको मजबूर नहीं कर सकते। अगर वहांकी प्रजा यह कहे, भले ही वहां मुसलमानोंकी आबादी अधिक हो, कि उसको तो हिंदुस्तानकी यूनियनमें रहना है, तो उसको कोई रोक नहीं सकता। अगर पाकिस्तानके लोग उसे मजबूर करनेके लिए वहां जाते हैं तो पाकिस्तानकी हकूमतको उन्हें रोकना चाहिए। अगर वह नहीं रोकती है तो सारे-का-सारा इल्जाम उसको अपने ऊपर अोढ़ना होगा। अगर यूनियनके लोग उसको मजबूर करने जाते हैं तो उनको रोकना है और उन्हें रुक जाना चाहिए, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है । काश्मीरकी बात तो मैंने आपसे कह दी। लेकिन एक दूसरी अच्छी बात भी मैं आपको सुना दूं। कलकत्तासे मेरे पास एक तार पाया है। मेरा ख्याल है कि मैंने आपको यह बता दिया था कि कल- कत्तामें एक शान्ति-सेना, जव मैं वहां था, तव बन गई थी। ईश्वरकी ऐसी ही कृपा हो गई थी। कलकत्तामें शांति स्थापित करना वड़ा कठिन- सा लगता था, लेकिन गांति-सेना वननेके वाद वह बड़ी आसानीसे हो गया और हिंदू या मुसलमान किसीको भी कोई खास नुकसान नहीं हुआ। उससे पहले तो जो बड़े मुहल्ले थे उनमें मुसलमान जमकर बैठ गए थे और हिंदुओंको वहांसे भगा रहे थे। पीछे हिंदुओंने भी कई जगह मुसलमानोंको, जो झोपड़ियां थीं या कुछ और था, उनको जलाया और उनपर अत्याचार भी किया। वह नहीं होना चाहिए था। इन - - -