पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/४२९

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४७८ प्रार्थना-प्रवचन सारे किस्सेमें तो मैं जाना नहीं चाहता। लेकिन जब मैं वहां जाकर बैठ गया तो भगवानकी कृपासे वह शांति-सेना बनी और जो विद्यार्थी- गण या दूसरे लोग थे, वे उसमें शामिल हो गए। अब वे लिखते हैं कि यहां दशहरा और ईद दोनों बड़े मजेसे हुए हैं। हिंदू-मुसलमान आपसमें भाई-भाई बनकर रह रहे हैं। कलकत्तामें ईद कल मनाई गई थी, लेकिन दिल्लीमें आज है। तो दशहरा और ईद दोनोंका जिक्र करते हुए यह तार मुझको भेजा है। वे लिखते हैं कि शांति-सेना सब जगह फैल गई थी। कहीं किसीका नुकसान नहीं हुआ, न हावड़ामें और न कलकत्तामें। कोई किसीको सता नहीं सका और दोनों दिन सब लोग आरामसे रहे। वे तो पूर्वी बंगालमें भी ढाकाकी ओर चले गए थे। तो मैंने सोचा कि आपको यह बात भी सुना दं, क्योंकि मुझको अच्छा लगता है कि जब हिंदुस्तानमें कहीं भी हिंदू-मुस्लिम-वैमनस्य दूर होता हो और एक-दूसरेके दुश्मन न रहकर सब भाई-भाई बनकर रहते हों। फिर कलकत्ता तो कोई छोटा-मोटा देहात थोड़े ही है। वहां करोड़ोंका व्यापार चलता है, उसमें बड़े-बड़े जहाज आते हैं, वहां हिंदू-मुसलमान दोनों रहते हैं और व्यापार करते हैं। अगर वहां हम एक-दूसरेके दुश्मन बन जाएं तो क्या वह सारा व्यापार मटियामेट नहीं हो जायगा ? अगर शांति-सेनाने वहां सबको भाई-भाई बनकर रहना सिखा दिया तो यह बहुत ही अच्छी बात है। कलकत्तासे क्यों न हम भी सबक सीखें और यहां भी क्यों न एक शांति-सेना बन जाए ? आज तो यहां ईद है न, इसलिए कुछ मुसलमान भाई मेरे पास आए थे। वे मुझको पह- चानते हैं कि मैं उनका दुश्मन नहीं, दोस्त हूं। मैं एक हिंदू हूं और वह भी एक सनातनी हिंदू, इसलिए मुझमें मुसलमानपन भी उतना ही भरा है जितना कि हिंदूपन । इसलिए वे मुझको अपना दोस्त मानकर पा गए थे। मैंने उनको ईद मुवारक कहा तो सही, लेकिन मैंने कहा कि में किस मुंहसे आपको ईद मुबारक कहूं। वे आज भी बेचारे भय- भीत पड़े हैं। सोचते हैं कि न जाने हिंदू उनको रहने देंगे या नहीं, या मारेंगे कि नहीं। कोई सब थोड़ा ही मारते हैं। लेकिन चूंकि काफी कत्ल हो गए, इसलिए भयभीत हैं। थोड़ी तादादमें हैं। तो क्या ,