पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/५२

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बात नहीं है। जीसाी ीसाको भगवान मानते हैं और किसी भी मनुष्यकी ीसाके साथ तुलना करना या किसी भी मनुष्यों ीसाके गुण मानना वे मूर्तिपूजा समझते हैं । मुसलमान मुहम्मदको औश्वर नहीं मानते और किसी चीज या व्यक्तिमें भीश्वरका आरोपण करना मूर्तिपूजा समझते हैं। यह बात सच होते हु भी वे लोग पैगम्बरकी मूर्तिपूजा ही करते हैं। और जहाँ सचराचर अससे भरपूर है, वहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति पर भगवानके आरोपणकी चात कहाँ रही ? व्यक्तिमात्रमें ओवरीय अंश है, किसीमें कम, किसीमें ज्यादा । वह अमरीकी पादरी अहिंसाका अर्थ नहीं समझा और भीसाके Resist not evil 'रामीका प्रतिकार न करो' का भाव भी नहीं समझा | Love thy enemies (अपने दुश्मनोंसे प्यार कर ) यह non-resistance (अप्रतिकार )का positive aspect (सक्रिय प्रकार ) है । Resist eril by good (बुराओका प्रतिकार भलाीसे कर ) असा वाक्य बाअिवलमें कहीं है, यह मुझे याद नहीं ।" (मेरा कहना यह था कि वाअिवलका असा अक वचन मुझे याद है।)

आज मुस्लिम परिपद पर अक सुन्दर लेख 'ट्रिन्यून में आया। वह पढ़ कर सुनाया गया, तो बापू कहने लगे "Long live Kalinath Roy (चिरजीवी हो कालीनाथ रॉय ) । कौमी सवाल और अछूतोंके लिअ संयुक्त मताधिकार जैसे सवालों पर आजकल जिस आदमीके लेख बहुत अनुभव और शानपूर्ण आते हैं।" आज अिमसनको पत्र लिखा कि बम्बभी सरकारने घोषणा की है कि जमीन बेच दी जायेंगी और वापस नहीं दी जायगी; मगर मैं आपको याद दिलाता हूँ कि पिछले साल जब हम सुलहकी बातचीत कर रहे थे, तब अर्विनने कहा था कि आयन्दा अमा प्रसंग आये तो जमीने बेचनी नहीं चाहिये । क्या आप अिस शुभेच्छाको धूलमें मिला देंगे ? और कुछ नहीं तो जिनके लिझे भावी सन्तान हमें फटकारे या बादमें हमें खुद जिनके लिखे पछतावा हो फिर भी कोभी मिलाज नहीं किया जा सके, असी बातें तो न कीजिये ! क्या दुश्मनीकी विरासत पीढ़ियों तक रखनी है ? मैंने पूछा कि जिस खत पर 'खानगी' लिखना चाहिये या नहीं । बापूने 'हाँ' कहा । अिस पर सरदार कहने लगे -" न लिखा तो भी क्या हुआ ? कोभी पढ़ लेगा तो क्या हो जायगा ? जो पढ़ेगा वही कहेगा कि जिन लोगों-जैसे नंगे भी कोभी नहीं जेलमें चले गये तो भी लड़नेसे बाज नहीं आते ?"