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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/५४

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रोमाँ रोलाने वापृकी स्विटजरलैण्डकी यानी रोलौंकी मुलाकातका अक अतिशय सजीव वर्णन, विनोद और ताजगीसे भरा हुआ वर्णन, अक अमरीकी मित्रको लिखे हुआ पत्रमें दिया है । जिसमें वे वापूकी और अपनी मुलाकातकी तुलना साधु डोमिनिक और संत फ्रांसिसकी भेंटसे करते हैं। डोमिनिक रोली या गांधीजी ? मुलाकात लेने तो डोमिनिक गया था लेकिन शायद डोमिनिककी अपेक्षा फ्रांसिसके जीवनकी तुलना गांधीजीके जीवनके साथ ज्यादा हो सकती है । सारा खत अितने ज्यादा हल्के मजाकसे भरा है कि यह तुलना भूपरी ही हो सकती है, जिससे ज्यादा नहीं । फिर भी जरा सोचनेकी बात तो अवश्य है । और डोमिनिक या फ्रांसिस दोनों से किसी अकके साथ भी अपनी तुलना करना जबरदस्त आत्मविश्वास और आत्म-स्वच्छताका भान जाहिर करता है । मुझे जहाँ तक याद है सन्त फ्रांसिस अन तपश्चर्याको मूर्ति या, जब कि डोमिनिक युक्ताहार विहार', 'युक्त .स्वप्नाववोध', 'कर्मसु युक्तचेष्ट' या । मगर कौन कहेगा कि फ्रांसिस योगी नहीं था ?

गेटेके जीवनमें त्याग और भोग, विलास और वैराग्य दोनों अमहते हैं; मगर भोग और विलाससे छुटकारा आखिर असे त्याग और वैराग्यमेंसे ही मिला है । और वह अंसा अनुभवका वाक्य छोड़ गया है कि प्रयत्नशील मनुष्यके लिझे सदा ही आशा है । प्रयत्नशीलताका लक्षण असकी अिन प्रसिद्ध पंक्तियों में दिखाभी देता है: Who has not cut his bread with sorrow Who hasn't spent the midnight hours Weeping and watching for tomorrow, He knows you not, Ye heavenly powers ! जिसने संतप्त हृदयके साथ अपनी रोटी खामी नहीं, जिसने कलके लिओ रोकर और जागकर आजकी रात गुजारी नहीं, हे भगवान, वह तुझे नहीं जानता! श्रीमती नायड्के बनारस जानेके बारेमें वापूका अनुमान यह है कि अन्हें मालवीयजीने बनारस बुलाया होगा और अन्होंने पाँच घण्टे २८-३-३२ जो बातें की, सो. कांग्रेसका अधिवेशन करनेके बारेमें हुभी होंगी । जब वे लोग कहते हैं कि कांग्रेस गैरकानूनी है, तो फिर असका जलसा करके और उसका बड़ा सवाल खड़ा करके असपर जेल क्यों न जायें ? जिन लोगोंका असा विचार हो तो आश्चर्य नहीं । ४९