" यह तो भावी शासनविधानमें भाग लेनेके बारेमें बापूने कहा देखकर कहा जा सकता है । विलायतमें भी मैंने कहा था और यहाँ भी कहता हूँ कि अगर असमें कुछ भी सत्ता नहीं मिलती हो तो असका कड़ा विरोध करना, और सत्ता मिल जाती हो तो धारासभाओं पर कब्जा जमाना । मैं न हो तो भी अितना तो कह ही जागा ।" वल्लभभाभी बोले साथ लाये, तो क्या अिस तरह अकेले चले जा सकेंगे ?" " यहाँ तक
रस्किनका Fors Clavigera (फोर्स क्लेविजेरा) बापूने बहुत रसके साथ पढ़ना शुरू किया और आज कहने लगे. " यह पुस्तक तो बारबार पढ़ें तो भी थकान नहीं मालूम होती । अिसमेंसे तो नी नी बातें सूझती हैं।" शिक्षाकी बुनियादके बारेमें कुछ विचार बहुत सुन्दर लगनेके कारण अिस विषय पर अक छोटासा लेख आश्रमको भेजा।* मैंने रस्किन और टॉल्स्टॉयके बीच
- जॉन रस्किन मेक अत्तम प्रकारका लेखक, अध्यापक और धर्मज्ञ था । भुसका
देहान्त १८८०के आसपास हुआ । असकी मेक पुस्तकका मुझ पर बहुत ही गहरा असर पड़ा और शुसीके सुझाये हुआ रास्ते पर मैंने अक क्षणमें जिन्दगीमें महत्वपूर्ण परिवर्तन कर डाला । यह वात ज्यादातर आश्रमवासी तो जानते ही होंगे । सुसने सन् १८७१में सिर्फ मजदूर वर्गको ध्यानमें रखकर अक मासिक पत्र लिखना शुरू किया था । सुन पत्रोंकी तारीफ मैने टॉल्स्टॉयकी किसी रचनामें पढ़ी थी । मगर वे पत्र में आज तक जुटा नहीं सका। भुसकी प्रवृत्ति और रचनात्मक कार्यके विषयमें अक पुस्तक मेरे साथ आयी थी, असे यहाँ पढ़ा । असमें भी सुन पत्रोंका अल्लेख था । जिस परसे मैंने रस्किनकी अक शिष्याको विलायतमें लिखा । वही मिस पुस्तककी लेखिका है । वह बेचारी गरीब, अिसलिओ ये पुस्तकें कहाँसे भेज सकती थो? मूर्खतासे या झूठे विनयसे मैंने असे आश्रमसे रुपया मॅगा लेनेको नहीं लिखा । मिस भलो स्त्रीने अपनेसे ज्यादा समर्थ मित्रको मेरा खत भेज दिया; वे • स्पेक्टेटर के मालिक हैं । अनसे में विलायतमें मिला भी था । अन्होंने ये पत्र पुस्तकाकार चार भागोंमें छपाये हैं, सो भेज दिये । जिनमेंसे पहला भाग में पढ़ रहा हूँ। जिनके विचार अत्तम हैं और हमारे बहुतसे विचारोंसे मिलते जुलते हैं - यहाँ तक कि अनजान आदमी तो यही मान लेगा कि मैंने जो कुछ लिखा है और आश्रममें हम जो भो आचरण करते हैं, वह रस्किनको मिन रचनाओंसे चुराया हुआ है । 'चुराया हुआ' शब्दका अर्थ तो समझमें आ ही गया होगा । जो विचार या आचार जिससे लिया हो असका नाम छिपाकर यह बताया जाय कि यह हमारी अपनी कृति है, तो वह चुगया हुआ माना जाता है। रस्किनने बहुत लिखा है । झुममेंसे मिस बार तो थोड़ा ही देना चाहता हूँ। वह कहता है कि अिन कयनमें गंभीर भूल है कि विलकुल अक्षरशान न होनेसे कुछ होना अच्छा ही है । रस्किनको माफ राय यह है कि जो सच्ची है, आत्माका शन करानेवालो है, वो शिक्षा है और वही लेनी चाहिये । और बादमें वह कहता है कि मिस ,