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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/६

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अहिंसांकी दृष्टिसे जब जब मौका मिलता या जरूरत होती, गांधीजी अपने विचार प्रकट करते थे । अनके भाषणों और लेखोंमें प्रकट हु ये विचार जनताके सामने हैं ही । अिस डायरीमें हमें ये विचार बातचीत और पत्रव्यवहारके जरिये जाननेको मिलते हैं । असमें दिलकी दिलसे बातें हुी हैं, जिस कारण ये विचार और उद्गार हमें ज्यादा सीधे और घनिष्ट रूपमें मिले हैं । आजकल साम्प्रदायिक सवाल और अछूतपन व जातपातके भेदोंके सवालका सबसे प्रमुख स्थान है, अिसलिये अिन पर भिस पुस्तकमें मिलनेवाले गांधीजीके अद्गार खास ध्यान खींचते हैं। सरदारको अक होशियार नेता और विचक्षण राजनीतिज्ञके रूपमें सारा देश जानता है; और अब तो हमारे देशसे बाहरकी दुनिया भी अन्हें जानने लगी है । किती तंत्र या संगठनको खड़ा करनेकी और असे अच्छी तरह चलानेकी अपनी कला और चतुराीका परिचय भी अन्होंने देशको दे दिया है। अिन्सानको असकी नजरसे या चालसे पहचान लेनेकी और नाप लेनेकी झुनकी असाधारण शक्तिके कारण बुरे आदमी अनके साथ निभ नहीं सकते, और जिस कारण कितने ही लोग सुनके विरोधी भी हो जाते हैं । विरोधीका भण्डाफोड़ करना हो तत्र साफ साफ भाषा बहुत कारगर ढंगसे मिस्तेमाल करना अन्हें आता है । अिसलि अन्हें अपर सुपरसे ही देखनेवाले पर सुनकी अक तरहकी सस्तीका असर पड़ता है । मगर अिस बाहरी दिखावेके पीछे साथियोंके प्रति कितना प्रेमपूर्ण और निष्ठावान हृदय छुपा हुआ है, वह यहाँ देखनेको मिलता है । गांधीजीके प्रति उनकी भक्ति और वफादारी तो अद्भुत ही है । जो वफादार साथी और अत्तम सेवक बनना जानता है, वही होशियार 'सरदार बन सकता है, अिसकी भी हमें यहाँ प्रतीति होती है । अनकी कार्य- कुशलताके बारेमें गांधीजीका प्रमाणपत्र यहाँ देनेकी लालच छोड़ी नहीं जा सकती "वल्लभभाी अरबी घोडेकी तेजीसे दौड़ रहे हैं । संस्कृतकी पुस्तक हायसे छूटती ही नहीं । अिसकी मैंने आशा नहीं रखी थी । वे लिफाफे विना नापे बनाते हैं और अन्दाजसे ही काटते हैं, फिर भी बराबरके निकलते हैं । और वक्त भी बहुत लगता नहीं मालूम होता । सुनकी व्यवस्था आश्चर्यमें डालनेवाली है । जो करना है असे याद रखने के लि छोड़ते ही नहीं । काम आया कि कर डाला । जबसे कातना शुरू किया है तबसे कातनेके समयके पाबन्द रहते हैं । जिस तरह रोज सूत और गतिमें सुधार हो रहा है। हाथमें लिया हुआ काम भूलते तो शायद ही होंगे । और जहाँ अितनी व्यवस्था हो, वहाँ धाँधलीका तो काम ही क्या?" 1