पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७

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c अिसके अलावा सुनका सीधी चोट करनेवाला विनोद गांधीजीको भी पेट पकड़कर हँसाता है, और तीनों साथियोंके अकधारावाले जीवनमें ओक तरहका रस भर देता है। महादेवभाजीके बारेमें तो क्या कहूँ ! अन्होंने अपनी कुशलतासे कार्यक विविध क्षेत्रोंको चमकाया है । अनके विपुल और अँचे दर्जेके लेखन कार्यसे बहुतोंको जैसा लगता है कि वे साहित्यके जीव थे। बेशक, अनमें अँचे दर्जेकी साहित्य शक्ति थी । परन्तु अनके जीवनका मुख्य ध्येय गांधीजीके जीवनमें और गांधीजीके कामोंमें विलीन हो जाना था । अनमें अद्भुत नम्रता थी । अपने दोष और अपनी कमियाँ अन्हें पहाड़के बराबर दीखती थीं और दूसरोंके दोष सुनके मनको राीके बरावर भी नहीं लगते थे। दूसरेके सिर्फ गुण ही देखनेका सुनका स्वभाव हो गया था । झुनकी नम्रता और अपने आपको मिटा देनेकी, शून्य बनकर रहनेको, सुनकी वृत्ति ही सुनके जीवनकी सफलता या सार्थकताकी खास कुंजी थी। जिस चीजके दर्शन झुनकी लिखी हुी अिन डायरियोंमें भी होते हैं। अिस डायरीमें अन्होंने अपनी पढ़ी हुी पुस्तकोंका मर्मग्राही विवेचन और कितनी ही पुस्तकोंमें से आकर्षक और शिक्षाप्रद अद्धरण दिये हैं । अिसके सिवा साधु टॉमस-ओ-केम्पिसका अन्होंने स्वाध्याय किया है । अिस डायरीका समय पूरे छह महीनेका भी नहीं है । अिस बीच अन्होंने की पुस्तकें पढ़ी दीखती हैं और अिस अध्ययनका अन्होंने हमें सुन्दर लाभ दिया है। जिसके सिवा दो खिदमतगारोंके जो रेखाचित्र दिये हैं, अनसे खयाल होता है कि छोटे माने जानेवाले मनुष्योंके साथ वे कितनी आत्मीयता पैदा कर सकते थे। मगर यहाँ मुझे रुक जाना चाहिये । महादेवभाीको हमारा सारा देश जानता है। अिस डायरीसे और जिसके बाद प्रकाशित होनेवाली डायरियोंसे पाठकोंको महादेवभाजीका ज्यादा निकट परिचय मिलेगा। पूना, २५-७-१९४८ नरहरि परीख