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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७४

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म्युरियल लिस्टरके पत्र विलायतकी पुरानी यादको हमेशा ताजा करते हैं । सुनके लिखनेमें अत्युक्ति न हो- और मालूम तो नहीं होती-तो यह कहा जा सकता है कि बापूके वहाँक निवासका असर साधारण लोगोंपर अच्छा रह गया है । चीन-जापानकी लड़ामी रोकनेके लिअ मिस मॉह रॉयडन और क्रोजियर सत्याग्रह-सेना तैयार कर रहे थे। म्युरियल खबर देती है कि असमें ६०० स्त्री-पुरुषोंने नाम लिखाये हैं । यह खबर महत्वपूर्ण कही जा सकती है । अिसे भी मैं तो बाके अहिंसा-प्रचारका परिणाम मानता हूँ। अिस समाचारका स्वागत करते हु बापूने यह आलोचना की "यहाँ भी हम शस्त्रोंसे लड़ने लगे, तो ये छह सौ आदमी अस लड़ामीको बन्द कराने आ जायेंगे ! अिन लोगोंको बलके सिवा और कोभी चीज अपील नहीं करती।" वाप्ने अिस बार यहुत पत्र लिखे और लिखवाये । सुबह सुरेन्द्रके नाम अक पत्र लिखा । और असे सुपरिप्टेण्डेण्टके जरिये ४-४०३२ भिजवाया। "महाचर्यके बारेमें तुमने लिखा था, सो मुझे मिल गया था। मिलेंगे तब जबर चर्चा करेंगे । जो विचार मैंने सिमाम साहबके यहाँ बताये थे, वे हवा हु हैं और होते जा रहे हैं । यानी अनुभव सुनको सचाभी साबित कर रहा है। तीनों कालमें और सब हालतोंमें टिका रहे वही ब्रह्मचर्य है । यह स्थिति बहुत मुश्किल है, मगर अिसमें आश्चर्यकी बात कोसी नहीं। हमारा जन्म विषयसे हुआ है। जो विषयसे पैदा हुआ है, वह शरीर हमें बहुत अच्छा लगता है । वंशपरंपरासे मिले हुओ अिस विषयी अत्तराधिकारको निर्विषयी बनाना कठिन ही है। फिर भी वह अमूल्य आत्माका निवासस्थान है। आत्माका प्रत्यक्ष हो तब ब्रह्मचर्य स्वाभाविक हो सकता है। और वह ब्रह्मचर्य साक्षात् रंभा स्वर्गसे अतर आये और स्पर्श करे, तो भी अखंडित रहता है। सबकी माता रंभाके समान हो सकती है । रंभा माताका खयाल करनेसे भी विकार शान्त होते हैं । अिसी तरह स्त्री मात्रका खयाल करनेसे विकार शान्त होने चाहिये । मगर कितना विस्तार करूँ ? सिसी पर बार बार विचार करके फलितार्थ निकालना । कुर्सी लगानेसे कोभी पिघल जाय, तो तुम असे अहिंसाका परिणाम समझो यह ठीक नहीं | मगर यह विषय महत्वका नहीं है । जैसे जैसे श्रद्धा बढ़ेगी, वैसे वैसे बुद्धि भी बढ़ेगी । गीता तो यह सिखाती जान पड़ती है कि बुद्धियोग औश्वर कराता है । श्रद्धा बहाना हमारा कर्तव्य है। यहाँ यह समझनेकी बात जरूर है कि श्रद्धा और बुद्धिका अर्थ क्या है। यह समझ भी व्याख्यासे नहीं आती, सच्ची नम्रता सीखनेसे आती है । जो यह मानता है कि वह <6