पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७३

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- < चिये । हरिनारायणको मैंने कहा 'मालूम होता है आप लोग तो समाजमें विद्रोह करायेंगे।' वे बोले हाँ, भले ही विद्रोह हो, मैं तो यही करूंगा।' अिस तरह बड़ी बहस हुअी थी । मैंने दूसरे दिन शास्त्री, देवधर, आपटे सबसे मुझे कल्पना नहीं थी कि मैं आपको दुःख दूंगा ।' मैंने माफी मांगी और अिन लोगों पर अच्छा असर पड़ा । बादमें तो हम लोगोंकी बन गयी ।" वल्लभमाश्री "आपकी तो सभीके साथ बन जाती है । आपको क्या है ? बनियेकी मूंछ नीची !" बापू बोले देखो, अिसीलिओ में कटा डालता हूँ न ?" कह दिया। ( " मुझे रोटी वेलनेके लिये बेलन चाहिये था । तीन चार बार आदमीने अिसके लिअ ढावेसे माँग की। मगर नहीं आया तो वार्डर २-४-३२ कहने लगा आज तो बोतलसे रोटी बेल लीजिये, कल तक वेलन आ जायगा।" वल्लभभाभी बोले "यहाँ असे लोग भी मौजूद हैं, जो बोतलसे रोटी बेलाते हैं ।" बापूने कहा मगर सचमुच, वल्लभमानी, बोतलसे रोटी अच्छी वेली जा सकती है या यह प्रयोग भी कर चुके थे। मैंने पूछा "फिनिक्स आश्रममें आप गये, तबतक रसोभिया तो या न ?" बापने कहा " नहीं, अससे पहले ही छुदा दिया था । अक रसोनिया बहुत अन्छा था । वह ब्राह्मण था । असके जानेके बाद अक जिद्दी आया । वह कहने लगा 'भाभी साहब, आप मिर्च वगैरा अिस्तेमाल नहीं करने देंगे, तो काम नहीं चलेगा। जिस पर मैंने कह दिया 'तो भले हो चले जाओ।' तबसे रसोभियेके बिना काम चलाने लगा । ग्याना बनाना, कपड़े धोना, पारखाने साफ करना और पीसना, ये सब काम घरमें दायते ही कर लेते थे । पीसनेके लिो ६ पोण्डकी कीमतवाली लोहेकी चकी ली थी। अक आदमीसे नहीं चल सकती थी, मगर दो मजेसे पीस सकते थे। मुबर मुबह झुठकर मेरा यही पहला काम था। जिसे चाहता अपने माय पीसने मिठा लेता । यह चक्की खड़े खड़े पीसनेकी थी। हत्या गुमानेके लिये भी दो आदमी लगते । पाव घप्टेमें हमारे सारे घरका आटा चिमाता था | और जमा चाहिये वैमा मोटा या महीन ।" पारगीली गोंने गय रुपया जमा करा दिया, न जमा करानेके लिये नगद प्रगट किया । कमिनाको फूल मालायें पदनाभी और 'सरकारकी जय संजी!! वचममाओ रहने लगे "अब म मरकारको लिखें कि सरकारकी मग, सय में हिम लिने बंद करके न अंदा है।" > 1 ८