पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७६

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that spiritual gifts should not be used for the purpose of healing bodily ailments. I do however believe in abstention from use of drugs and the like. But this is purely on physical, hygienic grounds. I do also believe in utter reliance upon God, but then not in the hope that He will heal me, but in order to submit entirely to His will, and to share the fate of millions who even though they wished to, can have no scientific medical help. I am sorry to say, however, that I am not always able to carry out my belief into practice. It is my constant endeavour to do so. But I find it very difficult, bei in the midst of temptation, to enforce my belief in full.' " मुझे की ीसामी सायंसवाले मित्र मिले हैं । सुनमेंसे. कुछने श्रीमती अडीकी पुस्तकें मेरे पड़नेके लिझे भेजी हैं । अिन सबको मैं पड़ तो नहीं सका, मगर भूपर भूपरसे नज़र डाल गया हूँ। अिन मित्रोंने जैसी आशा रखी होगी, वह असर तो अिन पुस्तकोंने मुझ पर नहीं डाला । मैं बचपनसे ही यह सीखा हूँ और अनुभवसे मिस शिक्षाकी सचाीका मुझे विश्वास हुआ है कि आध्यात्मिक शक्तियोंका या सिद्धियोंका उपयोग शारीरिक रोग मिटानेके लिअ नहीं करना चाहिये । वैसे मैं यह भी मानता हूँ कि दवाओं वगैरासे भी अिन्सानको परहेज रखना चाहिये । मगर यह बात सिर्फ आरोग्य रक्षाको शारीरिक दृष्टिसे ही है । और फिर मैं भगवान पर पूरी तरह निर्भर रहनेमें विश्वास करता हूँ। अिस आशासे नहीं कि वह मुझे अच्छा करे, चंल्कि झुसकी अिच्छाके अधीन होने और गरीबोंके दुःखमें भागीदार बननेके लिमे ही अन गरीबोंके दुःखमें जिन्हें खूब - अिच्छा होने पर भी शास्त्रीय डॉक्टरी मदद नहीं मिल सकती । मगर मुझे अफसोसके साथ कहना चाहिये कि मैं अपने अिस विश्वास पर सदा अमल नहीं कर पाता । वेशक मेरा प्रयत्न हमेशा भिसो तरफ रहता है, मगर अनेक लालचोंके मारे मैं पूरी तरह अस पर अमल नहीं कर सकता । अिस वारके पत्रोंमें बहनोंको सम्बोधन करके जो पत्र लिखा था, वह बड़े महत्वका या । वह तो सारा ही अद्धृत करने लायक है । असमें भी सबसे बढ़िया हिस्सा यह है: “ अक बहुत ही बड़ा दोष मैंने बहनोंमें यह देखा है कि वे अपने विचार सारी दुनियासे छिपाती हैं । जिससे अनमें दंभ आ जाता हैं । और दंभ अन्हींमें आ सकता है, जिनमें असत्य घर कर बैठता है । दंम-जैसी जहरीली चीज जिस जगतमें में दूसरी कोसी नहीं जानता । और जब हिन्दुस्तानकी मध्यम वर्गकी स्त्रीमें, जो सदा ही दबी हुमी रहती है, दंभ " ७१