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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७७

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आ जाता है, तब तो वह कनखजूरेकी तरह असे कुतर कुतर कर खा जाता है । वह पग पग पर वही करती है जो असे नापसन्द है, और असा मानती है कि असे करना पड़ता है । वह जरा समझ ले तो मालूम हो जाय कि अिस संसारमें किसी दबनेका असके लिझे कारण नहीं है । वह जैसी है वैसी सारी दुनियाके सामने हिम्मतके साथ खड़ी रहनेको तैयार हो जाय और यह पहला सबक सीख ले, तो दूसरे कारण जो मैंने बताये हैं अनसे भी निवट सकती है।" प्रेमा बहनने लिखा या आज कल तो आश्रममें सब कसरतके पीछे पड़े हुआ है। यह तो आपका वारसा है न कि जो शुरू किया असके पीछे पर जायें ?" जिसका जवाय बापूने विस्तारसे दिया - ." तुम आश्रमको जो प्रमाणपत्र देनी हो वह मैं नहीं दूंगा । सही हो तो यह प्रमाणपत्र जरूर अच्छा लगेगा । यह छाप तुम पर भले ही पड़ी हो कि आश्रम जिस कामको हाथमें ले लेता है, असर पीछे पागल हो जाता है । मगर वह सही नहीं है । हम अभी तक आयम बतों पर ही कहाँ पूरी तरह चल पाते हैं ? आश्रममें हमें हिन्दी, मुई, तामिल, तेलगू और संस्कृत सीखनी थी। जिसका बहुत ही शिथिल प्रयत्न हुआ है । चमड़की कलाको हमने कही सीखा है ? बारीकसे बारीक खत दम कहाँ निकालते हैं ? असी बहुतसी बातें बता सकता हूँ। मेरी गंकाकी पुष्टि लिने जितना काफी है । लाठी वगैराके पीछे सब पड़ सकते हैं । यह कहना तो अंगा हुआ ने मिठाओके पीछे सब पड़ते है । दुनिया में अंगो नी जबर है, जिनके पीछे पड़नेमें परिश्रम नहीं है। हम पशु परिवारके भी ना है, भिसलिो हममें यह गुण स्वाभाविक है। वह सीखना नहीं पाता। प्रभ या कि वह मीलना चाहिये या नहीं । पशु जातिक गय गुण त्याज्य गो बात भी नहीं।" भिम मुमार पर कि आपने जमी टीका गीता पर लिखी मी अपनिषदों पर मी. भिमी पप लिया .अपनिषद मुझे पसन्द हैं। अनका अर्थ Kि मिनी अपनी योग्यता नहीं मानता ।" और कुल मामुली याने मी 2ी - " प्रेमीजनोंमे अपने दोग पूछे, या अनेक गुननी पी कर प्रेम दोर पर पदो पल देता गुर्ण पदया। मंगगन दोर ताग, या प्रेमका HAI, र नाता देवनेती शानिर होता है। तुम . . . के 'aar | या गिननं माया कि अग मी तुम्हारी ...? काय ग र दिम्किलन मा तो ga । गुमाल मागे पागलागी ", मुगुमा पाटिल