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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/७९

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था - बापूकी तरफ देखकर कहा "अिसे क्यों न बचाया जाय ?" बापू कहने लगे मेरा लोभ सीख लो तो अच्छा ही है !" अिस वाक्यमें मीठा कटाक्ष था, यह वल्लभभाभी क्यों जानने लगे ? जिसका सम्बन्ध आज शामको अक वाक्यमें मुझे जो कुछ कह दिया था, अससे महादेव, यह वल्लभभाीके लिओ नहीं है । तुमको ही सूचना कर देता हूँ कि यहाँ बाहरसे जो चीजें आ रही हैं, अन पर अंकुश रखना । मैं देख रहा हूँ कि धीरे धीरे मामला बढ़ता ही जा रहा है। मेरे मनसे यह खयाल नहीं हटता कि यह रुपया हमारा जा रहा है। जो कुछ वल्लभभाीकी तन्दुरुस्तीके लिअ जरूरी हो, वह अवश्य मँगाया जाय । परन्तु मर्यादा समझ लेनी चाहिये ।" कल सत्याग्रह सप्ताह शुरू होता है । अिसलि पिंजाी शुरू करना है। वापसे पूछ रहा था कि "पीजनकी ताँत कैसी है ? ५-४-३२ आपसे कितनी बार टूटी थी ?” बापू बोले जतन करना आता हो तो कुछ भी न टूटे। शंकरलालने मेरे पाससे ली कि टूटी । काकाने मुझसे ली कि टूटी । लेकिन मेरी तो की दिन चलती रहती । यह तो जतनका काम है । देखो तो यह लंगोट पहनता हूँ। असे सँभाल समालकर पहना करता हूँ। और किसीके पास होती तो कभी की फट जाती ।" वल्लभभाजी बोले. यह तो असा लगता है जैसे पहनते ही न हों और खूटी पर ही सँभालकर रख छोड़ी हो ।" बापू कहने लगे भैसा ही है।" यह कहा जा सकता है कि “जतन करना आता हो तो" अिन शब्दों में बापूका सारा जीवन आ जाता है । “दास कबीर जतन कर ओढ़ी, ज्योंकी त्यों घर दीन्हीं चदरिया", वापूको देखकर ये शब्द अक्सर याद आते हैं। ३०-३५ वर्षसे शरीरको और मनको शुद्धिका जैसे अिन्होंने जाग्रत जतन किया है, वैसा किसने किया होगा ? आज सरदारका वजन १३६॥ पौड-~यानी जितना या अतना ही रहा। मेरा अक पौड कम यानी १४८ और वायका २॥ पौंड ६-४-३२ कम हुआ यानी १०३॥ रह गया । बापूका वजन अितना घट जानेका कारण बापूने यह दिया कि आज अपवास होनेके कारण पानी, शहद, रोटी, और बादाम नहीं लिये और अिनका अतना वजन बाकी निकालना चाहिये । मेजरने भी हाँ भरी । ७४