- ब्रिटिश दूतावास, अलेप्पो, सीरिया रविवार ता. १७ जनवरी प्रिय गांधीजी, अभी आप जेलमें हैं। मैं मानती है कि वहाँ आपको अक शतरंजी स्वीकार करनेकी छूट होगी । यह यहींके निराधार शरणार्थियों द्वारा खुद कात- बुन कर तैयार की हुओ और आमिनियाके राष्ट्रीय रंगोंको है । युद्धके शिकार हुआ और मृत्युकी यातनाओं से गुजरे हुओ लोगोंके प्रति अपने देशका ऋण चुकानेके लिभे में यहाँ आयी हुी है और अिन शरणार्थियोंकि वीचमें रहती हूँ। यह जाति अभी वाल्यावस्थामें है और अक दूसरेसे लड़नेवाले बड़े राष्ट्रोंकी भिच्चीमें आ गयी है । यह भी अिनकी मदद करने का अक कारण है | रंग जिस प्रकार हैं : लाल त्यागकी निशानीके तौर पर, बादली आशाके प्रतीकके रूपमें और सुनहरी -प्रकाशके चिहस्वरूप । दुनियाको आप जो सन्देश दे रहे हैं असके लिओ बहुत आभारकी भावना रखनेवाली, आपकी मोटो अडिय रॉबरटो नानाभाभीका पत्र आया । असमें दक्षिणामूर्तिकी आर्थिक स्थितिके बारेमें चिन्ता दिखाई गयी थी। और गिजुभाीके बच्चेको क्षयके कारण पंचगनी रखनेकी बात थी । क्षयके बारेमें बताते हुओ लिखा “ क्षयसे क्षयका डर ज्यादा दुःख देता है । जिसके बारेमें क्षयकी बात होती है वह खुद अपनी बीमारीका ही ख्याल करता रहता है और जहाँ तहाँ क्षयसे होनेवाला दर्द देखा करता है । मनसे यह भूत निकाल भगाया जा सके, तो बीमार झट अच्छा हो जाता है।" दक्षिणामूर्तिकी माली परेशानीके बारेमें लिखा : धनका सवाल तुम्हें क्यों वाधा देता है ? यह चीज तो तुम मुझसे सीख ही लो, क्योंकि अिस मामलेमें मैं विशेषज्ञ माना जा सकता हूँ। 'महात्मा बननेसे पहले ही मैं जो बात सीख चुका या वह यह है. अधार रूपया लेकर व्यापार करना जैसे गलत अर्थशास्त्र है, वैसे ही झुधार रुपयेसे सार्वजनिक संस्था चलाना गलत धर्मशास्त्र है। और जिस संस्थामें अच्छेसे अच्छे आदमियोंको भीख माँगने के लिअ भटकना पड़े, असका नाम सुधार व्यापार ही है। तुमने संख्याका हिसाब रखा है, असके बजाय यह हिसाब क्यों नहीं रखते कि जितना रुपया आये मुसीके अनुसार विद्यार्थी लिये जायें ? मैं जो कुछ लिख रहा हूँ अस पर अमल करना बहुत ही आसान है । सिर्फ संकल्पकी आवश्यकता है । 1 ७७
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