पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/९४

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तरह सौका हिसाब पूरा कर देंगे । 'मियाँ लूटे मूठ मूठ और अल्ला लूटे अँट झूट |" बापूने कहा " लो, देख लो, तुम्हारे जाननेके लिो नी कहावत तैयार है ।"

आज हीरालाल शाहके पत्रमें बड़ा मजा आया । बापूको खगोलका शोक लगा है, अिसलि शाहसे पूछा कि कोमी अपयोगी साहित्य हो तो बताओ। दूरवीनके बारेमें भी कुछ जानकारी माँगी । अन्होंने अपने स्वभावके अनुसार बापूको गहरे पानीमें अतारा । ज्योतिषकी बलिया पुस्तकें और नको भेजे । अितना ही नहीं, कालिदासके नाटक पहनेकी भी सलाह दी । और सूचना दी कि दूरबीन भावनगरके पटणी साहबसे मँगाअिये या पृनामें प्रो० त्रिवेदीसे मिल सकती है। मैंने वापसे हंसकर कहा बाप, यह तो बाबाजीकी लँगोटीवाली बात हो गयी ।" बापूने कहा "हाँ, किसी चीजकी जान अनजानमें अिच्छा करते हैं तो भोग मिल जाता है । अिन्हें लिखना पड़ेगा।" " बापू ज्यादातर अपने पत्रोंमें लिखते हैं कि कैदी हूँ। मेरा पत्र कहीं न छपे, यह ध्यान रखना । मगर जहाँ पत्र छापनेका डर न हो वहाँ असा क्यों लिखें ? फिर भी आज मालूम हुआ कि डॉ० मुथुको अनकी भेजी हुी पुस्तकोंकी जो पहुँच भेजी गयी थी, अस पत्रको अन्होंने प्रकाशित कर दिया! क्तिनी दिशाओं में सावधानी रखनेकी जरूरत पड़ती है ?

बापूने 'आत्मकथा में यह खयाल जाहिर किया है कि प्रारम्भिक जीवनमें अनमें आत्मविश्वासकी कमी थी। मगर जिस कमीको दिखानेवाले सारे प्रसंग नहीं दिये । आजकल तुले हु वाक्योंमें जो अपूर्व तर्क करके बापू सामनेवालेको मुग्ध कर लेते हैं और बहुत बार अपने पर होनेवाले हमलोंका विलक्षण खंडन करते हैं, उस परसे हमें जैसा लगता है कि वकीलके रूपमें चमकनेके बारेमें तो अन्हें पहलेसे ही विश्वास होना चाहिये । लॉयड जार्जका जीवनचरित्र पढ़ने पर मालूम होता है कि १८ वर्षकी झुम्रमें लिखी गयी डायरीमें भी असली महेच्छा, महत्वाकांक्षा, कीर्ति और कला सम्बन्धी आत्मविश्वास नजर आता है। वामें यह नहीं था । अिसके अदाहरणके तौर पर अन्होंने आज बात कही । अन्हें भरोसा नहीं था कि वैरिस्टरीका धन्धा चलेगा । खर्च तो बना ही हुआ था । अिसलि बम्बीमें किसी पाठशालामें ७५) रुपयेकी शिक्षककी नौकरीके लिमे अर्जी दी। अि पाठशालाका शिक्षक भी कैसा होगा जिसने बापूको मिलने