गतिसे संस्कृत भाषाका प्रचार कम हो जानेके कारण उनका उपयोग प्रामा भी असम्भव हो रहा था। परन्तु पूर्वकालीन महर्षियोंकी तरह वर्तमान समयके भारत- पाली विद्वानोंने इनको सर्वसाधारण के लिए सुलभ बनानेके उद्देश्यसे अपनी अपनी भाषामें उनका अनुवाद करना प्रारम्भ कर दिया है जिससे वे उत्तरोतर लोकादरपात्र भी हो रहे हैं। यह प्रश्न हो सकता है कि मराठी भाषामें प्रन्थ प्रकाशनका काम करनेवाली यह संस्था हिन्दीकी और कैसे और क्यों झुक रही है। इसलिये इस प्रश्नका निराकरण पहले कर देना चाहिए कि हिन्दीकी ओर हमारी प्रवृत्ति कब और क्यों हुई। 'महाभारत' का मराठी भाषान्तर हरिवंशपर्व-सहित नौ भागों में प्रकाशित होचका था। अनन्तर दसवे भाग-उपसंहार-के प्रकाशनका समय प्राया। इस कार्यमें सहायता प्राप्त करनेके उद्देशसे हम होल्कर सरकारकी राजधानी इन्दौर में गये । उस समय इन्दौर दरबारमें मेहरबान मेजर ल्युअर्ड एम० ए.भार० ए० प्राइवेट सेक्रेटरीके पद पर थे। हमने हिज़ हाइनेस श्रीमन्त सवाई तुकोजीराव महाराजसे भेंट कर अपना उद्दिष्ट हेतु प्रकट किया। परन्तु चाहे हमारे दुर्देवसे हो, चाहे ईश्वरका कुछ विशेष विधान होनेके कारण हो, हमें महाराज साहबने जैसा पूर्ण आश्वासन दिया था वैसी सहायता उनसे आजतक नहीं मिली। तब हमने दैवयोगसे इन्दौर दरबारके रेविन्यू मेम्बर राय बहादुर मेजर रामप्रसादजी दुवे साहबसे प्रार्थना की। उनकी कृपासे सेन्ट्रल इण्डियाके ए० जी० जी० मेहर पान टक्कर साहबसे भेंट करनेका अवसर मिला। हमारी प्रार्थनाको सुनकर उन्होंने कहा कि-"यदि तुम्हारा ग्रन्थ हिन्दी भाषामें होता तो मैं इधरके हिन्दी भाषाभि- मानी राजा महाराजाश्रोसे यथाशक्ति सहायता दिलवाना। यह ग्रन्थ मराठीमें है इसलिये सहायताका कोई उपाय नहीं है। इधरके जिन मराठी भाषावाले दरबारी- से मेरा सम्बन्ध है उनसे तो तुमने पहले ही सहायता प्राप्त कर ली है।" पाठको ! टक्कर साहबके आठ वर्ष पूर्वके उक्त भाषणका दृश्य फल आज श्राप लोगोंके करकमलों में प्रस्तुत है। इससे श्राप लोगोंको विदित हो जायगा कि ईश्व- रीय संयोग और घटना कैसे होती है. भविष्यकालमें होनेवाले कार्यका बीजारोपण किससे और कैसे हो जाता है और बीजागेपण हो जाने पर भी अंकुर फूटकर फल- फूलले पूर्ण वृक्ष तैयार होने में कितनी अवधि लगती है। टक्कर साहयके कथनका परिणाम यह हुमा कि हमारे मनमें हिन्दी भाषाके सम्बन्धमें लकीरसी खिंच गई। तिस पर भी अनेक अपरिहार्य अड़चनों में व्यग्र होनेके कारण सन् १९१८ के जून तक-हिन्दी-सेवाका दृढ़ निश्चय होने पर भी हम कुछ भी न कर सके। धार-दरबारके प्राश्रयसे ता० २०१४ को मराठी महाभारतका संयाँ भाग-उपसंहार-प्रकाशित हो गया और हम अपने कामोसे निश्चिन्त हो गये। इसी समय, सन् १९१२ में हमारे मनमें हिन्दीसेवाका जो बीजारोपण हो चुका था उसके अंकुरित होनेके स्पष्ट चिह दिखाई पड़ने लगे। उसी बोधप्रद इतिहासको अपने परिचयके नाम पर हम आज आप लोगोंके सन्मुख रखते हैं। मराठी भाषामें सम्पूर्ण महाभारतके प्रकाशित हो जाने पर हिन्दीसेवाकी सुम भावना जोरदार रीतिसे जागृत होने लगी। दसवे भागको अपने परम शुभ-
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