पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/९

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श्रीकृष्ण प्रसन्न । प्रकाशकका निवेदन। यत्कृतं यत्करिष्यामितत्सर्व न मया कृतम् । त्वया कृतं तु फलभुक्त्वमेव मधुसदन ॥१॥ प्रिय पाठक महाशयो ! इस विराट विश्वकी उत्पत्ति, स्थिति और लय करके मात्म-स्वरूपमें रममाण होनेवाले, शुद्ध सत्स्वरूप, षडगुणैश्वर्य-सम्पन्न, मायातीत, सर्ष- व्यापी, सर्वसाक्षी, सर्वांतर्यामी, अघटितघटनापटु, बहुरूपी, बहुगुणी, अनाद्यनन्त, पदुकुलावतंस, भगवतिरुक्मिण्यादि-शक्तिसंघसेवित, पादपद्मपूजानिरतयोगिवृन्दहद्- हागृहशायी श्रीकृष्णचन्द्र के चरण-कमलों में अनेक साष्टांग प्रणाम करके उस सचिदा- नन्दके अतुलनीय कृपाप्रसादसे हिन्दी भाशमें तैयार होनेवाले इस "महाभारत. मीमांसा" नामक ग्रन्धको हम सभी अवस्थाके अपने हिन्दी प्रेमी भाई-बहनोंको शुद्ध सात्विक प्रेमसे आदरपूर्वक अर्पण कर उनकी प्रेम-प्राप्तिकी आशा करते हैं। प्रार्थना है कि हिन्दी भाषा-भाषी हमारे बन्धुगण हमारी इस धृष्ताको क्षमा कर हमारे स्वीकृत कार्य में सहायता देनेकी कृपा करेंगे और हमसे अपनी यथाशक्ति सेवा करा लेंगे। हमें विश्वास है कि हमारी सब बातोको ध्यान रखने पर पाठकगण तन मन धनसे हमें पूर्णतया उत्तेजित करनेके लिए सहर्ष तैयार हो जायँगे । सनातन धर्म की रीति है कि-"रिक्तपाणिर्न पश्येच राजानं देवतां गुरूं।" इसी उक्तिके अनुसार हम भी हिन्दी-जमतारूपी परमेश्वरके सम्मुख अपने सद्ग्रंथ रूपी इस विनम्र भेटको लेकर अग्रसर होते हैं और आशा करते हैं कि हमारे विनीत परिचय तथा भेंटको प्रेमपूर्वक ग्रहण कर वे हमें अपने दयामय हृदयमें स्थान देंगे। सुविख्यात ऐतिहासिक पूना शहरमें एक कम्पनी है। उसका नाम “मेसर्स गणेश विष्णु चिपलूणकर आणि कम्पनी" है। इस संस्थाने सन् १६०२-०३से आजतक श्रीपागवत, श्रीवाल्मीकि रामायण, श्रीमन्महाभारत और श्रीवाल्मीकि-प्रणीत वृह- घोगवासिष्ठ इन चार प्रन्योंका भाषान्तर मराठी में प्रकाशित कर अपनी मातृभाषा तथा अपने महाराष्ट्रीय समाजकी सेवा की है और मराठी प्रन्थभांडारको पुष्ट किया है। यह व्यवसाय लगभग १८ वर्षोसे जारी है। संस्थाका विचार है कि भविष्यमें भी कोई ऐसा अन्य प्रकाशित किया जाय जो महाराष्ट्री जनताको रुचिकर हो। उपर्युक्त चारों ग्रन्थ हमारे भारतवर्षको राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं। उन पर समस्त सनातनधर्मियोंका यथार्थमें कानूनकी दृष्टिसे पूरा पूरा अधिकार है। परन्तु काल-