पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१००

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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा कम अनियन्त्रित है: तीसरा प्रकार- था और इनका उपयोग भी हुआ करता भारतके प्रधान और ज़ोरदार श्लोक; था । रामायणमें भी इनका उपयोग किया चौथा प्रकार–नया बढ़ाया हुआ भाग गया है। ईसवी सन्के पहलेके अनेक जो रामायणके श्लोकोंके समान है । हाप्- काव्य-ग्रन्थ नष्ट हो गये हैं। उनमें इन किन्सने एक और पाँचवाँ प्रकार भी वृत्तोंका उपयोग किया गया था। सारांश, बतलाया है जो महाभारतके अनन्तरका श्राधनिक छन्दःशास्त्र के ग्रन्थोंके रचे जाने- है। परन्तु उसका जो उदाहरण दिया के पहले ही भिन्न भिन्न छन्दोंकी कल्पना गया है वह अनुष्टुप् छंदका नहीं मालूम उत्पन्न हो गई थी और उसीके अनुसार होता। जैसे, सौतिने श्लोक बनाये हैं। यही श्लोक पुरावृताऽभयंकरा मनुष्यदेहगोचराः। वर्तमान ग्रन्थकारोंके लिये प्रमाणभूत हो अभिद्रवन्ति सर्वतो यतश्च पुण्यशीलने ॥ गये हैं। त्रिष्टुभ-वृत्तके जो अनियमित यह श्लोक अनुष्टुप् छन्दका नहीं है। श्लोक हैं, वे महाभारतके प्राचीन भागमेंसे यह भिन्न अक्षर-वृत्तका श्लोक है । सारांश, हैं। सम्भव है कि इन्हींके नमूनेपर सौतिने हापकिन्सके मतानुसार भी छन्दोंके भी नये श्लोक बनाये हों । यह बात विचारसे महाभारतका समय उपनिषद्- प्रसिद्ध है कि कालिदासने शकुन्तलाके कालसे रामायण-कालतक जा पहुँचता है। चौथे अङ्कमें वैदिक ऋचाओंके नमूनेपर, त्रिष्टुभ्से बड़े वृत्तके श्लोक साधा- अग्निकी स्तुतिमें ऋचा वनाई है । अतएव रण तौर पर आदि पर्वके प्रारम्भमें, यह कोई असम्भव बात नहीं है कि ईसवी शान्ति पर्वमें, अनुशासन पर्वमें और सन्के पहले २०० के लगभग सौतिने हरिवंशमें पाये जाते हैं। वे अन्य पर्वोमें शार्दूलविक्रीड़ित आदि छन्दोंमें श्लोक भी हैं, पर उनकी संख्या बहुत थोड़ी है। बनाये हों। अब यह प्रश्न भी किया जा यह बतलाया जा चुका है कि उक्त भाग सकता है कि जो प्रार्यावृत्त पहले प्राकृतम सौति द्वारा बढ़ाये गये हैं। कर्ण पर्वमें उत्पन्न हुआ, वह संस्कृतमें कब लिया गया एक स्थानमें लगातार पच्चीस अर्धसमवृत्त होगा? रामायणम अक्षर-छन्दोका बहुत पाये जाते हैं; वहीं एक शार्दूलविक्रीडित कम उपयोग किया गया है, परन्तु आर्या और पाँच मालिनी वृत्तके श्लोक भी हैं। वृत्तके श्लोक नहीं हैं। इससे कुछ लोग अनुशासन पर्वमें आर्या वृत्तके छः श्लोक यह कहेंगे कि महाभारतका कुछ भाग हैं। कुछ लोगोंका कथन है कि ये श्लोक रामायणके अनन्तरका है । परन्तु यह नूतन छन्दःशास्त्रके नियमानुसार शुद्ध हैं कोई नियम नहीं हो सकता कि रामा- और ये नियम सन् ५०० ई० के लगभगके ; यणमें आर्यावृत्तका उपयोग किया जाना है। ऐसी दशामें यह प्रश्न उठता है कि ये आवश्यक ही था। यद्यपि यह वृत्त रामा- श्लोक सौतिके कैसे माने जायँ ? इनका यणमें न हो, तथापि यह नहीं कहा जा समय ईसवी सन् २०० वर्ष पहलेका कैसे कि वह संस्कृत भाषामें उस समयके हो सकता है ? परन्तु स्मरण रहे कि सन् पहले प्रचलित ही न था। महाभारत- ५०० ईसवीका जो समय ऊपर बतलाया। कालमें अनेक प्राकृत-ग्रन्थोका निर्माण हो गया है, वह आधुनिक छन्दोग्रन्थका है, चुका था । इनके द्वारा आर्यावृत्तका नकि स्वयं छन्दोंका ही। इन छन्दोंका उपयोग संस्कृतमें किया जाना सम्भव अस्तित्व उस समयके सैंकड़ों वर्ष पहले है। सारांश, महाभारतका जो समय