पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/९९

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  • महाभारतबन्धका काल

समान नहीं हैं। कालिदासके काव्यके अाजकल के नियम अनुसार ठीक कहा समयसे तो ऐसे श्लोक प्रायः कृत्रिम और जाता: दुर्बोध दुआ करते हैं। लौतिने भी ऐसे यह बतलानेकी आवश्यकता नहीं कि श्लोक बनाये थे और उसे इन श्लोकोंको त्रिष्टुम् श्लोक मूल वैदिक मन्त्रोंसे लिये रचना करनेकी कला भी अच्छी तरह गये हैं। यद्यपि वैदिक त्रिष्टुभमें हस्व- सघ गई थी। इस बातका प्रमाण यह है दीर्घका कोई नियम नहीं होता, तथापि कि “यदाश्रौषम्" इत्यादि ६६ श्लोक उसमें चाहे जहाँ ह्रख या दीर्घ नहीं रख महाभारतके पहले अध्यायमें इसी वृत्तमें दिया जाता। ह्रस्व-दीर्षकी ऐसी योजना रचे गये हैं। इसमें सन्देह नहीं कि यह करनी पड़ती है कि जिससे कृत्सके माधुर्य- पूरा अध्याय और ये सब श्लोक सौतिके | की हानि न होने पावै । उदाहरणके लिये ही हैं। षिष्टुभ्-वृत्तके इन श्लोकोंके आधार इस वैदिक त्रिष्टुभ् श्लोकार्ध पर विचार पर महाभारतका काल कालिदास श्रादि- कीजिये-'नमस्ते विष्णवास आकलोमि । के पहलेका और रामायणके भी पहलेका तन्मे जुषस्व शिपिविष्ट हव्यम् । इसके निश्चित होता है: क्योंकि रामायणके प्रत्येक चरणमें ग्यारह अक्षर अवश्य त्रिष्टुभ् श्लोक नियमवद्ध देख पड़ते हैं। हैं, परन्तु इसका ह्रस्व-दीर्घ-क्रम बर्तमान ___यह जानना चाहिये कि श्लोक और त्रिष्टुभ-वृत्तके समान नहीं है । इतना त्रिष्टुभकी रचना के विचारसे ग्रन्थ-काल- होने पर भी इसका ह्रस्व-दीर्यक्रम माधुर्य- निर्णयमें कैसी सहायता मिलती है। इस से खाली नहीं है। वैदिक त्रिष्टभका बातका निश्चय पहले हो चुका है कि महा- अनुकरण करनेके कारण, महाभारतका भारत-ग्रन्थ वैदिक कालसे लेकर अर्वा- त्रिष्टुम् अनियन्त्रित है और इसीसे जान चीन संस्कृतके समयतक बना है। अर्थात् पड़ता है कि उसका समय बहुत प्राचीन उसमें कुछ भाग अत्यन्त प्राचीन हैं और है। अनुष्टुभ् छन्दके प्रथम और द्वितीय कुछ नये भी हैं । रामायण-कालमें हस्व- पादके ह्रख-दीर्घका क्रम अबतक निश्चित दीर्घके अनुक्रमका जो नियम निश्चित हो नहीं है; तथापि माधुर्यको दृष्टिसे उसके यया था, महाभारतके त्रिष्टुभकी रचना भी कुछ नियम हैं। इन नियमोको ढूँद उससे भिन्न देख पड़ती है। यह बात उसके निकालनेका प्रयत्न विद्वान् लोगोंने अनेक अनेक श्लोकोसे सिद्ध है। जैसे, "न चैत- श्लोकोंकी तुलनासे किया है। एक उदा- द्विद्मः कतरनो गरीयः” । इसमें हस्व-दीर्घ- हरण लीजिये-यदि 'दमयन्त्या सह लो का अनुक्रम निश्चित नियमके अनुसार विजहारामरोपमः' के स्थानमें 'विज- नहीं है। ऐसे अनेक श्लोक महाभारतमें हार देवोपम' कर दिया जाय तो यह पाये जाते हैं। इससे महाभारतका काल भूल होगी अर्थात् इसका माधुर्य नष्टले रामायणके पहलेका निश्चित होता है। जायगा । इस प्रकार श्लोकोंकी तुलका "प्रकामि त्वां धर्मसम्मढचेता, यह करके हापकिन्सने काल-सम्बन्धी वह चरण भी ध्यान देने योग्य है। इसमें 'मि' अनुमान निकाला है कि महाभारतमें तीन और 'सम्' ये दो अक्षर दीर्घ हैं। यदि वे चार तरहके लोक देख पड़ते हैं। पहला हस्व होते तो यह चरण नियमानुसार हो प्रकार-बिलकुल अनियन्त्रित-उपनिषदों- मान अर्थात् , यदि 'पृच्छामि ते धर्म के सोकाक नमूनपर: दूसरा प्रकार- विमानतः ऐसा वरण होता, तो यह महाभारतका प्राचीन भाग जो इससे कुछ