पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१०२

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा, .

है। इसके सिवा अन्य कोई प्रमाण अब है: त्रिमूर्तिका उल्लेख है; यजुर्वेदकी १०१ तक नहीं मिला है । बाहरके लांगोंके शाखाएँ बतलाई गई हैं; ग्रीक शब्द और प्रन्थको देखनेसे बौद्ध अथवा जैन ग्रन्थी- ग्रीक लोगोंका उल्लेख है; अठारह पुराण में महाभारत ग्रन्थका उल्लेख हमने नहीं बतलाये गये हैं; व्याकरण,धर्मशास्त्र, ग्रन्थ, पाया। परन्तु ग्रीक लोगोंके ग्रन्थोंमेंसे पुस्तक, लिखे हुए वेद और महाभारतकी डायन् क्रायसोस्टोम् नामक वक्ताके ग्रन्थ- लिखी हुई पोथीका वर्णन है; अतएव इन में एक लाख श्लोकोंके इलियडका उल्लेख सब बातोसे महाभारतका समय बहुत ही है। यह वक्ता ईसवी सन्के लगभग ५० | आधुनिक होना चाहिये । परन्तु सच वर्ष पहले हिन्दुस्थानमें पाया था। इस बात तो यह है कि इन बातोमेसे किसी- बातका उल्लेख हम पहले ही कर चुके हैं। का भी काल निश्चित नहीं है । ये सब यह बात जर्मन पंडित वेबरकी खोजसे बातें ईसवी सन्के २०० वर्ष पहलेकी भी मालूम हुई है। इसके आधार पर विचार हो सकती हैं। ऐसी दशामें इन कारणों करनेसे महाभारतका समय ईसवी सन्के का कुछ भी उपयोग नहीं किया जा पहले ५० वर्षके इस पार लाया ही नहीं सकता । हापकिन्सका यह भी कथन है जा सकता । उक्त दोनों प्रमाण अत्यन्त कि "श्रादि पर्वके प्रथम भाग और महत्वके हैं, इसलिये हमने उनका उल्लेख हरिवंशको छोड़ बाकी महाभारत ईसवी- प्रारम्भमें ही कर दिया है। सन् २०० के लगभग बना होगा। परन्तु इस प्रकार, अन्तःप्रमाणों और बाह्य । ये भाग इसके भी अनन्तरके होंगे, क्योंकि प्रमाणोंका विचार करने पर, यह सिद्ध 'दीनार' नामक रोमन सिक्केका उल्लेख होता है कि ईसवी सन्के पहले ३०० में हरिवंशमें है और हरिवंशका उल्लेख सिकन्दरके समय हिन्दुस्थानमें ग्रीक प्रथम भागमें है। यहाँ यह प्रश्न उठता है खोगोंके आने पर और ईसवी सन्के कि रोमन दीनार सिक्का हिन्दुस्थानमें पहले ५० वर्षके लगभग डायन क्रायसो. कव श्राया ? यदि मान लिया जाय कि स्टोम्के हिन्दुस्थान पानेके पहले, विशेषतः वह हिन्दुस्थानमें सन् १००-२०० ईसवी इस देशमें राशियोंके प्रचलित होनेके पहले, के लगभग पाया, तो भी यह मान लेनेसे और पतञ्जलिके समयके पहले अर्थात् काम चल सकता है कि हरिवंशमें जिस ईसवी सन्के १५० वर्ष पहले महाभारत- स्थानमें उक्त उल्लेख है, उतना ही भाग का काल निश्चित है। सारांश, यही पीछेका होगा। कारण यह कि समस्त निर्णय होता है कि महाभारतका वर्तमान महाभारतमें-शान्तिपर्व और अनुशासन खरूप ईसवी सनके लगभग २५०-२०० पर्वमें भी-दीनारोका कहीं उल्लेख नहीं वर्ष पहलेके समयका है। है। प्रत्येक स्थानमें सुवर्ण-निष्कोका ही पश्चिमी विद्वानोंका कथन है कि महा- उल्लेख किया गया है। अर्थात्, समस्त भारतका काल बहुत ही इस पारका है। महाभारत और ये भाग २०० के पहलेके इस बातको सिद्ध करनेके लिये हाप्किन्स- हैं। पीछेसे हरिवंशमें एकाध श्लोकका ने कुछ कारण भी बतलाये हैं। अब हम श्रा जाना सम्भव है । हम पहले कह संक्षेपमें उन्हींका विचार करेंगे। उसका श्राये हैं कि महाभारतका हरिवंश नामक कथन है कि महाभारतमें ६४ कलाएँ भाग केवल संख्याक लिये और श्रीकृष्ण- बतलाई गई हैं ; दर्शनोंके मतोंका उल्लेख | कथाकी पूर्तिके लिये पीछेसे जोड़ दिया