पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१०३

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  • महाभारत प्रस्थका काल &

गया है, परन्तु हरिवंश ग्रन्थ सौतिका अन्य सूत्रोंमें भारत और महाभारतके नहीं है, क्योंकि सौतिने उसकी जो संख्या बदले इतिहास और पुराण शब्दोंका क्तलाई है वह सिर्फ अंदाजसे और उपयोग किया गया है। सांख्यायन स्थूल मानकी है। हरिवंशमै बारह हज़ार सूत्रमें कुछ भी उल्लेख नहीं है। जबकि श्लोकोंकी संख्या अन्दाजसे और मोटे महाभारतका उल्लेख प्राचीन सूत्रों में हिसाबसे बतलाई गई है। जैसे उद्योग न होकर सिर्फ अाधुनिक सूत्रोंमें ही है, पर्वकी ६६६८ श्लोक-संख्या सूक्ष्म हिसाब- नब यह प्रकट होता है कि सूत्र-कालमें से बतलाई गई है वैसे और दूसरे पर्वो- महाभारत नहीं था ।” परन्तु सच के श्लोकोकी संख्याकेसमान निश्चित नथा बात तो यह है कि कौनसे सूत्र किस ठीक ठीक श्लोक-संख्या हरिवंशकी नहीं समय बने, इस बातका ठीक ठीक निर्णय बतलाई गई है। इससे प्रकट है कि हरि- ही अबतक नहीं हुआ है। ऐसी अब- वंशके सम्बन्धमें सौतिने कोई जिम्मेदारी स्थामें महाभारतके कालके सम्बन्धमें नहीं ली थी। इस खिलपर्वमें १५४८५ कुछ भी अनुमान नहीं किया जा सकता। श्लोक हैं; अतएव यह मानना होगा कि हाँ, यह अनुमान अवश्य निकलता है कि सौतिके अनन्तर भी इस पर्वमें श्लोकोंकी कुछ सूत्र प्राचीन समयके हैं और कुछ बहुत कुछ भरती हुई है। सारांश, हरि- उसके बादके। (३) हापकिन्सका कथन वंशमें दीनारोंका जो उल्लेख पाया जाता है है कि-"पतञ्जलिके महाभाष्यमें- उसके आधार पर महाभारतके कालका 'असि द्वितीयोऽनुससार पांडवम्' यह निर्णय करना उचित न होगा। वाक्य है और अन्य स्थानोंमें भी महाभा- प्राप्किन्सने और भी अनेक कारण । रतका दरका उल्लेख है। इससे महा बतलाये हैं। देखना चाहिये कि उनसे भारत पतञ्जलिके पहलेका सिद्ध होता है कौनसी बात निश्चित होती है । (१) और उसका समय ईसवी सन्की दूसरी उसका कथन है कि-"अनुशासन पर्वमें सदीतक पहुँच जाता है। परन्तु यह भूदानकी प्रशंसाके श्लोकोंमें ताम्रपटका कैसे और किसने निर्णय किया कि कहीं उल्लेख नहीं है । अग्रहार, परिग्रह महाभाष्यका काल दुसरी सदीका है? पादिका उल्लेख तो है परन्तु ताम्रपटका हम पहले कह पाये हैं कि महाभारत नामतक नहीं है। मनुमें भी यह उल्लेख पतञ्जलिके पहलेका है और पतञ्जलिका नहीं है, परन्तु नारद, विष्णु और याज्ञ- काल ईसवी सन्के पहले १५०-१०० वल्यमें है । इससे महाभारतका काल के लगभग है । ऐसी दशामें उक्त ताम्रशासनके पहलेका जान पड़ता है।" प्रमाण हाप्किन्सके विरुद्ध और हमारे परन्तु यह बात ध्यान देने योग्य है कि उक्त मतके अनुकूल ही देख पड़ता है। (४) विवेचनसे इस बातका ठीक ठीक निश्चय हापकिन्सके कथनुनासार-"जिस समय नहीं होता कि महाभारतका काल ताम्र- महाभारत लिखा गया, उस समय बौद्धों- शासनके कितने समय पहलेका माना का प्रभुत्त्व नष्ट हो गया होगा, क्योंकि जाय । (२) हाप्किन्सका कथन है कि- एडूक अथवा बौद्धोंके देवस्थानोंका "आश्वलायन सूत्रमें सुमन्तु जैमिनी- निन्दापूर्वक उल्लेख किया गया है। यह वैशंपायन-पैल-सूत्र-भाष्य-महाभारत-धर्मा- वर्णन वनपर्वके उस अध्यायमें है जिसमें चार्याः इस प्रकार उल्लेख है । परन्तु यह बतलाया गया है कि कलियुगमें कौन