पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१०७

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क्या भारतीय युद्ध कागतिक है? तीसरा प्रकरणी तक है। घरका कथन है कि-वैटिक साहित्य में भारती-युख अथवा भारती योद्धाओंका कुछ भी उल्लेख नहीं है।' ब्राह्मणोंमें 'अर्जुन' इन्द्रका नाम है। अर्जुन- क्या भारतीय युद्ध काल्प- का नाती परीक्षित था और उसके पुत्र निक है ? जनमेजयका उल्लेख 'पारीक्षित-जनमेजय' कहकर शतपथ ब्राह्मणमें किया गया है। महाभारतके कालका निर्णय हो जाने परन्तु यह कहीं नहीं बतलाया गया पर, अब हमारे मनमें यह जिज्ञासा है कि वह अर्जुनका पोता था। भार- उत्पन्न होती है कि जिस मूल भारत-तीय-युद्ध ब्राह्मण-कालमें अथवा ब्राह्मणों के ग्रन्थके आधार पर महाभारतकी रचना पहले होना चाहिये । यदि ऐसा ही हुआ हुई है, वह मूल भारत-प्रन्थ कब बना हो, तो यह कितने आश्चर्यकी बात है कि होगा। इसमें सन्देह नहीं कि भारती- जिस भारतीय युद्ध में हजारों और लाखों युद्धके अनन्तर इस ग्रन्थका निर्माण हुआ वीर मारे गये और अर्जुन तथा श्रीकृष्णने है । तब स्वभावतः यह प्रश्न होता है, कि बहुत पराक्रम दिखाया, उस युद्धका भारती-युद्ध कब हुश्रा ? इस प्रश्नका कहीं उल्लेख ही न हो ! सचमुच यह विचार करनेके पहले हमें एक और बात- श्राश्चर्यकी बात है कि अर्जुनके पोतेका का विचार करना चाहिये । कुछ लोगों- तो उल्लेख है, पर स्वयं अर्जुनका उल्लेख का कथन है कि-"भारतीय युद्ध हुश्रा नहीं है ! इससे यही प्रकट होता है कि ही नहीं । यह तो केवल एक काल्पनिक भारतीय युद्ध काल्पनिक है और भारतमें कथा है। इसमें उपन्यासके तौर पर, वर्णित व्यक्ति कवि-कल्पना द्वारा निर्मित सद्गुणों और दुर्गुणोंका उत्कर्ष दिखलाने- सद्गुणोंकी मूर्तियां हैं।" अब यहाँ इसी वाले, अनेक काल्पनिक पात्रोका वर्णन विचार-मालापर विचार किया जाना है।" इस भ्रमोत्पादक कल्पनाको दूर कर चाहिये। देनेकी बहुत आवश्यकता है। यह कल्पना किसी व्यक्ति या घटनाके होने अथवा कुछ ऐसे-वैसोंकी नहीं, किन्तु अनेक न होनेके सम्बन्धमें साधारण रीतिसे यह विद्वानों और पण्डितोंकी है। गुजराती प्रमाण काफ़ी समझा जाता है कि उसका पण्डित गोवर्धनराम त्रिपाठीका माननीय उल्लेख ऐसे ग्रन्थमें हो जिसे लोग ऐति-: ग्रन्थ 'सरस्वतीचन्द्र' हालमें ही प्रकाशित हासिक मानते हो । रोम शहरका स्थापन- हुआ है । उसमें भारतीय-युद्धके सम्बन्धमें | कर्ता रोम्युलस नामका कोई पुरुष हो रूपककी कल्पना बहुत ही अच्छी तरहसे गया है, इस बातको सिद्ध करनेके लिये प्रकट की गई है। परन्तु स्मरण रहे कि रोमका कोई प्राचीन इतिहास काफ़ी है। वह कल्पना केवल कल्पना ही है। जर्मन फिर चाहे उस इतिहासमें उस पुरुषकी पण्डित वेबर और रमेशचन्द्र दत्तने भी कथा दन्तकथाके तौर पर ही क्यों न दी ऐतिहासिक तत्त्वोंसे इस मतको स्वीकार गई हो । इसी प्रकार होमर के इलियडसे किया है और इसको प्रमाण भी माना। यह बात सिद्ध मानी जाती है कि एकि- है। अतएव विचार करना चाहिये कि लीज़ नामक कोई ऐतिहासिक व्यक्ति था। इन लोगोंके कथनमें सस्यका अंश कहाँ- इसी न्यायके अनुसार अब भारतमें हो