पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१२१

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ॐ भारतीय पुछका समय कुछ इतिहासकार काश्मीरके पूर्व कालके सब ज्योतिषियोंके मतोंके विरुद्ध और राजाओंकी गलत फेहरिस्त देते हैं : परन्तु प्रत्यक्ष महाभारतके भी वचनोंके विरुद्ध, कलियुगके उक्त ६५३वे वर्ष में पाण्डव थे; वराहमिहिरने भारतीय युद्धका यह समय इस कालके अनुसार मैंने राजाभोंकी कैसे बतलाया!अच्छा, यदि उन्होंने गर्गके फेहरिस्तको सुधार दिया है ।" इससे वचनके प्राथार पर यह मत दिया है, तो स्पष्ट मालूम होता है कि कल्हणके समय- प्रश्न है कि गर्गने ही यह समय कैसे पता में यह मत प्रचलित था, कि पाण्डव लाया ? गर्गका समय हमें मालूम नहीं। कलियुगके प्रारम्भमें हुए । इसको त्याग कुछ लोग मानते हैं कि गर्गका समय कर, वराहमिहिरका आधार लेकर, कल्हण महाभारतके बाद और शक सम्वत्के मे कलियुगके प्रारम्भसे ६५३वे वर्षमें पहले होगा । परन्तु ऐसा मालूम होता है भारतीय युद्धका होना बतलाया है । परन्तु कि गर्ग महाभारतके पहले हुश्रा होगा। इसके कारण महाभारतके वचनोंसे स्पष्ट महाभारतमें गर्गका नाम आया है। चाहे विरोध होता है । "प्राप्तं कलियुगं- हम किसी समयको माने, परन्तु यह विद्धि" इस श्लोकसे, और कलियुगके निश्चित दिखाई पड़ता है कि गर्ग शक. अनन्तर ६५३ वर्षों के बाद भारतीय युद्ध सम्बतके पहले हुआ। ऐसी दशामें गर्ग- हुश्रा, इस कथनसे मेल नहीं हो सकता। के द्वारा यह नियम बना दिया जाना "कलिद्वापरयोः अन्तरे" इस वचनसे भी सम्भव ही नहीं है कि, शक-सम्वत्में स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि भारतीय युद्ध अमुक वर्ष मिला देनेसे युधिष्ठिरका समय कलियुगके श्रारम्भ होनेके पहले हुआ। निकल पाता है। यह बतलानेके लिये ऐसी दशामें यह कथन गलत होगा कि साधन नहीं है कि गर्गका मूल वचन क्या कलियुगके ५३ वर्षोके बाद युद्ध हुआ। था। गर्ग-संहिता नामक जो एक प्रन्थ कुछ लोगोंके (विशेषतः आर्य-समाजी प्रसिद्ध है, उसमें इस सम्बन्धका कुछ भी लोगोंके) मतानुसार, इन ६५३ वर्षोंको वर्णन नहीं है। २५२६ की संख्या गर्गने कलियुगका सन्धिकाल समझकर, यह ही दी है, यह मानकर उसका स्पष्टी- मान लेना चाहिये कि सच्चा कलियुग करण करनेके लिये श्रीयुत अय्यरने एक अभीतक नहीं हुआ है और महाभारतके अद्भुत उपाय बतलाया है। वह यह है वचनसे मेल मिला लेना चाहिये । परन्तु कि शक-कालका अर्थ शाक्य मुनिका काल इस तरहसे भी मेल नहीं मिल सकता: समझना चाहिये । यदि यह मान लिया क्योंकि यदि इस तरहसे कलियुगका जाय कि बुद्ध के मृत्यु-कालसे कहीं कहीं सन्धिकाल मान लें, तो द्वापरका अन्तर बुद्धकाल-गणना शुरू हो गई थी, तो यह नहीं आ सकता । ऐसा वर्णन है कि द्वापर समय हमारे मतके अनुकूल हो जाता है। और कलिके अन्तरमें अर्थात् ठीक सन्धि- (अय्यर अपना काल कैसे साधते हैं, यह में युद्ध हुआ । महाभारतके वर्णनके अनु- आगे कहा जायगा) बौद्धों में आजकल कूल यह स्थिति ठीक मालूम होती है कि जो निर्वाण-शक प्रचलित है, उसे सन् चैत्र शुक्ल प्रतिपदाको कलियुग लगा ईसवीके ५४३ वर्ष पूर्वका मान लेनेसे और उसके पहलेके मार्गशीर्ष महीनेमें | और उसे २५२६ में मिला देनेसे, २५२६+ भारतीय युद्ध हुआ। ५४३ अर्थात् सन् ईसवीके ३०६६ वर्ष एक बड़े आश्चर्यकी बात यह है कि पूर्वका समय, श्रीकृष्णके और कलियुगके