पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१२०

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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा इससे सन्देह करनेका स्थान रह जाता है साधन दिया गया है वह काल्पनिक है कि कदाचित् कलियुगका प्रारम्भ-काल और कलियुगके प्रारम्भ-कालमें वैसी पीछेसे गणितके द्वारा निकाला गया हो।" , प्रत्यक्ष स्थिति भी न थी। तब फिर यह परन्त यदि दीक्षितको यह बात मालम नहीं कहा जा सकता कि कलियगका होती अथवा स्मरण रहती कि उस पारम्भ-काल पीछेसे गणित-द्वारा सिर समय राजाओंको वंशवाली प्रचलित थो, किया गया है। तो उन्हें ऐसा सन्देह न हुआ होता । यह बात मेगास्थिनीज़के द्वारा दी हुई पीढ़ियों वराहमिहिरका भ्रमपूर्ण मत। और वर्षोंकी संख्यासे सिद्ध होती है। कलियुग-कालके सम्बन्धमें कदाचित मेगास्थिनीज़का प्रमाण अत्यन्त प्राचीन शङ्का उपस्थित होगी; परन्तु मेगासिनीज- अर्थात् सन् ईसवीके लगभग ३१२ वर्ष की बतलाई हुई बातोंके सम्बन्ध में किसी पहलेका है। यानी, वह उस समयका प्रकारकी शङ्का नहीं की जा सकती। इन है जब कि आर्य ज्योतिषीको ग्रह-गणित . दोनोंके सहारे भारतीय युद्ध के समयको करनेका शान न था। इससे यह निश्चय- . निश्चित करने में कठिनाई न होगी । अब पूर्वक सिद्ध होता है कि ऐसी वंशावलियाँ हमें यहाँ वराहमिहिरके इस कथनका पूर्व कालमें थीं। यह बात निर्विवाद है कि विचार करना चाहिये, कि भारतीय युद्ध पूर्व कालमें इतिहास भी थे और हिन्दु- ' कलियुगके प्रारम्भमें नहीं हुआ । वराह- खानमें ऐतिहासिक बातें तथा वंशावलियाँ मिहिरने यह मत गर्गके मतके आधार पर लिखकर रखी जाती थीं। चीनी यात्री दिया है। गर्गके मतको उन्होंने इस प्रकार हुएनसाने स्पष्ट लिख रखा है कि- लिखा हैः- "प्रत्येक राज्यमें इतिवृत्तकी पुस्तक साव- । षड्द्विकपञ्चद्वियुतःशककालस्तस्य राक्षश्च। धानतासे लिखकर रखी जाती है। अर्थात् , युधिष्ठिरका समय बतलाने- काश्मीरमें इस प्रकारका हाल और वंशा-' के लिये शक सम्वत्में षद्विपश्चद्वि बली लिखी हुई थी. उसीके आधार पर अर्थात् "अंकानां वामतो गतिः' के हिसाब कल्हण कविने राजतरंगिणी नामक से २४२६ के मिलाने पर युधिष्ठिरका समय काश्मीरका इतिहास लिखा । आजतक निकलता है । हमने भारतीय युद्धका भाट लोग राजपूतोंकी वंशावलियोंको समय सन् ईसवीके ३१०१ वर्ष पहले सावधानीसे लिखते हैं। सारांश, यह अथवा शक-सम्बत्के ३१७६ वर्ष पहले निर्विवाद है कि मेगास्थिनीज़की लिखी ठहराया है। इस समयमें और वराह- हुई वंशवालीमें दिये हुए वर्णनसे पूर्व मिहिरके समयमें ६५३ वर्षाका अन्तर है। कालमें, वंशावलीका होना पाया जाता राजतरङ्गिणीकार कल्हणने अपने काव्य- . है। हमारा मत है कि ऐसी वंशावलियो रूपी इतिहास में इसी समयको लेकर स्पष्ट के श्रापार पर युधिष्ठिरके अनन्तर बीत कहा है कि सुकनेवाले वर्ष लोगोंको मालम रहे शतेषु षटमु सार्थेसु व्यधिषु च भूतसे। होने और उन्हींके आधार पर कलियुगका कलेतेषु वर्षाणामभूवनकुरुषारडकाः ॥ भारम्भ-काल निश्चित किया गया होगा। वहाँ उसने यह भी कहा है कि- ऊपर बतलाया ही जा चुका है, कि “इस बातसे विमोहित होकर कि पांडव कलियुमरम्भ-काल मिश्रित करनेका जो कलियुगके प्रारम्भमें हुए, काश्मीर