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महाभारतमीमांसा

  • महाभारतमीमांसा ®.

तरह है। पार्गिटर साहबके कथनानुसार र्गत ग्रामपोंके पहले हुमाः; अलवज्ञा ग्रह भारतीब युद्ध ऋग्वेदके बाद १०० वर्षों में मालूम नहीं होता कि वह कितने वर्षों के हुमा । प्रवाहम अपने अनुमानका दूसरा पहले हुआ। साधक माग बतलायेंगे। प्रो० मैक्डानल इस प्रकार हमारे अनुमानका पहला अपसंस्कृतसाहित्यके इतिहास सम्बन्धी प्रमेय सिद्ध हो गया । हमारा पहला प्रायमें कहते हैं-"महाभारतकी मूलभूत प्रमेय यह है कि भारतीय युद्ध अग्वेद- पेतिहासिक कथा, कुरु और पांचाल रचना-कालके अनन्तर १०० वर्षोंमें और मानक पड़ोस पड़ोसमें रहनेवाले, दो यजुर्वेद तथा शतपथ ब्राह्मणके कुछ राजामों के बीच में होनेवाला युद्ध है। इस वर्षोंके पहले हुमा । अब यदि ऋग्वेद युद्धके कारण और बाद वे लोग एक हो अथवा यजुर्वेदका समय ठहराया जा गये । यजुर्वेदमें इन दोनों जातियोंका सके, तो भारतीय युद्धका समय सहजमें सम्मिलित होना लिखा है। काठक-ब्राह्मण- ही बतलाया जा सकता है। यही हमारा में धृतराष्ट्र वैचित्रवीर्य राजाका वर्णन दुसरा प्रमेय है। इस प्रमेयके सम्बन्धमें वैसा ही किया गया है जैसा सब लोगों- पाश्चात्य विद्वानोका और हमारा तीन को मालूम है। इससे कहना पड़ता है मतभेद है। पार्गिटर साहब कहते हैं कि, कि-महाभारतमें बतलाया हुश्रा यह युद्ध ऋग्वेदके अन्तिम सूक्तको देवापिका और अत्यन्त प्राचीन समयमें हुआ । यह समय पहले सूक्तको विश्वामित्रका मान लेनेपर, ईसवी सम्के पहले, दसवीं सदीके इस देवापि और विश्वामित्रमें पीढ़ियों के पार नहीं हो सकता।" इस अवतरणसे आधार पर ७०० वर्षाका अन्तर दिखाई विदित होगा कि भारतीय युद्ध-कालके पड़ता है और भारतीय युद्धके समयको सम्बन्धमें वैदिक साहित्यके प्रसिद्ध सन् ईसवीके १००० वर्ष पहले मान लेने पाश्चात्य विद्वानोका क्या मत है । इस पर ऋग्वेदका समय सन् ईसवीके पूर्व विचार-प्रणालीका एक भाग हमें मान्य १०००-१७०० वर्षातक पीछे चला जाता नहीं है, परन्तु दूसरा भाग मान्य है। है। मालूम होता है कि इसमें प्रोफेसर मोफेसर मैक्डानलने यजुर्वेदका समय मैकडानलके मतका ही प्राधार लिया सन् ईसवीके १००० वर्ष पूर्व रखा है। गया है। इसी लिये इन्होंने यजुर्वेदकी इस भानको छोड़कर उनके शेष मतको रचनाका समय सन ईसवीले १००० वर्ष मान्य समझना चाहिये । यजुर्वेदमें कुरु- पूर्व माना है। पाश्चात्य परिडतोंने वेदों पांचालोका एकत्र उल्लेख है और काठक- का जो यह रचना-काल निश्चित किया है ग्रामणमें वैचित्रवीर्य धृतराष्ट्रका उल्लेख उसका प्राधार क्या है ? उनका और है। इससे यह अनुमान निश्चयपूर्षक हमास यहीं पर मतभेद होता है। पाचात्य निकलता है कि, भारतीय युद्ध यजुर्वेदके परिडत वैदिक साहित्यको बिलकुल पहल अथवा काठक-ब्राह्मणक पहलेहुधा अर्वाचीन कालकी ओर चलने का प्रया इसी अनुमानको हमारे मतानुसार दूसरी करते हैं और इस तरहसे भएतकारसके । सहायता इस बातसे मिलती है, कि शुक्ल प्राचीन इतिहासकी सभी बालों को प्रा- यजुर्षेदके शतपथ ब्राह्मण जनमेजय पारस-चीन कालकी ओर घसीटके रहोकी भूल हितका उल्लेख है। इससे यह सिद्ध है कि किया करते हैं। पार्गिवरील मैदानल भारतीय युद्ध यजुर्वेद के और उसके अन्ता के एक मतको माम्ब करके हमास पहला