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महाभारतमीमांसा

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किया गया है। वह कभी खंडित नहीं में होना बन्द हुना, और इस समय भी किया जा सकता । ऐसी दशामें, हम वह पूर्व में नहीं होता। ऋषियोंने ईसवी थोड़ाइस बातका विचार करेंगे कि दीक्षित सन्के करीब ३००० वर्षोंके पहले कृत्तिका- द्वारा निकाले हुए प्रमाणका क्या उत्तर का उदय पूर्व में देखा । २०० वर्षों में उसका दिया जा सकता है। पूर्वमें उदय होना बन्द हो गया। अब यदि स्मरणकी कल्पना असम्भव है। पाश्चात्य विद्वानोंके मतानुसार यह मान दीक्षितके कथनका उत्तर आजतक | लें कि शनपथ- ब्राह्मण ईसवी सन्के लग- किसीने नहीं दिया । अतएव अपनी भग ८०० वर्षों के पूर्व लिखा गया, तो कल्पनाके द्वारा हम बतलावंगे कि उसका प्रश्न उठता है कि जो घटना सन् ईसवी- स्या उत्तर दिया जा सकता है। कभी के २८०० वर्ष पहलेसे बन्द हो गई थी, कमी इस तरहका उत्तर अप्रत्यक्ष रीतिसे अर्थात् जिस कृत्तिकाका २००० वर्षोसे सम्मुख पाता है, इसलिये हमें उसका भी ठीक पूर्वमें उदय होना बन्द हो गया थाः विचार करना चाहिये । कुछ लोगोंका उसके सम्बन्धम शतपथमे यह वाक्य कथन है कि इस तरहके विधान स्मरणके कैसे लिखा जा सकता था कि उसका माधार पर किये जाते हैं। कृत्तिकाका पूर्वमें उदय पूर्वमें होता है ? यह स्मरण भी उदय होना प्राचीन कालमें ऋषियोंने लोगोंमें इतने समयतक कैसे रह सकता देखा होगा और यह बात अद्भत होनेके है ? कृत्तिकाका ठीक पूर्व बिन्दुमें उदय कारण लोगोंके स्मरणमें सैंकड़ों वर्षोतक होना ऋषियोंने सन् ईसवीके लगभग रह गई होगी। इस कारण, यद्यपि ३००० वर्ष पूर्व बारीकीसे देखा था। शतपथ-ब्राह्मण अर्वाचीन कालमें लिखा यदि उस समय उनका उतना शान था, गया हो, तो भी उसमें इस बातका उल्लेख तो सम्भव है कि आर्योका शान इसी किया गया होगा । इस प्रकार, स्मरण-' तरहसे आगे भी कायम रहा होगा और मूलक इस कल्पनाको मानकर शतपथ- : यज्ञयाग आदिके करनेवाले, भविष्यमें ब्राह्मणके वचनका प्रमाण खण्डित किया भी आकाशकी ओर देखते रहे होंगे। तब जा सकता है। उनके ध्यानमें यह भी आ गया होगा कि परन्तु हमारा मत है कि यह स्मरण कृत्तिकाका उदय पूर्व में नहीं होता । सम्बन्धी कल्पना नहीं ठहर सकती । अतएव, स्मरण-सम्बन्धी कल्पना यहाँ शतपथ-ब्राह्मणके वाक्यमें वर्तमान काल ठीक नहीं म होती। का प्रयोग किया गया है, भूतकालका लोग आक्षेप कर सकते हैं कि भाज- नहीं । कोई मनुष्य यह कह सकेगा कि कल हम लोग चैत्र-वैशाखको जो वसन्त उसे अमुक समयमें धूमकेतु दिखाई पड़ा: ऋतु कहते हैं, वह स्मरणके आधार पर परन्तु धूमकेतु न दिखने पर ऐसा कोई कहते हैं। यदि प्रत्यक्ष स्थिति देखी जाय नहीं कहेगा कि धूमकेतु दिख रहा है। तो सम्पातके पीछे चले जानेके कारण कृत्तिकाका उदय ठीक पूर्व दिशा में होता फाल्गुन-क्षेत्रको वसन्त कहना चाहिये। और बरकरीब करीब १००-१५० वर्ष पहले किसी समयमें वसन्तका पहला तक पूर्वमें ही होता रहा: परन्तु सम्पात- महीना चैत्र था और उस समयले चैत्र- बिन्दुके पीछे हटते रहनेके कारण कुछ वैशाखको वसन्त ऋतु कहनेकी परिपाटी समयके बाद कृत्तिकाका उदय पूर्व बिंदु-शुरू हो गयी । अाजकल स्थिति बदल गई