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महाभारतमीमांसा

१२६ महाभारतमीमांसा* २०वें अध्यायमें, उत्तराके विलापमें, कहा कृष्ण दूतकर्म करनेके लिये कौरवोंके पास गया है कि-"मेरा और आपका समागम जानेको निकले, तब वे- छः महीनोंका था, सातवेंमें आपकी मृत्यु कौमुदे मासि रेवत्यां शरदन्ते हिमागमे । हो गई।" इससे ब्याहका वैशाखमें होना अर्थात् कार्तिक महीनेमें रेवती नक्षत्र ठीक जमता नहीं, ज्येष्ठ बदी ११को पर चले थे । उस दिन रेवती नक्षत्र था, ठोक मालूम होता है। अर्थात् मार्गशीर्ष इससे यह दिन सुदी तेरस ही जान पड़ता बदी ११को छः महीने पूरे होते हैं। ये है। कदाचित् एक दो दिन आगे पीछे भी आश्विन ज्येष्ठ आदि महीने सौर वर्षके हो। उपप्लव्यसे हस्तिनापुर जानेमें उन्हें ही हैं । स्मरण रहे कि ये नाम भारती | दो दिन लगे । हस्तिनापुरमें उन्हें चार युद्ध के बादकी पद्धतिके अनुसार बतलाये पाँच दिन रहना पड़ा । वहाँसे आते गये हैं । उक्त विवेचनसे मालूम होता है समय उन्होंने कर्णसे भेंट की । इस भेटमें कि पाण्डवोंने अपनी शर्त चान्द्रमानसे कर्णका भाषण हुआ। उसमें कर्णने इस पूरी की । इसलिये यह सिद्धान्त दृढ़ होता प्रकार ग्रहस्थितिका वर्णन किया है-"उग्र है कि पाण्डव चान्द्र मानका वर्ष मानते ग्रह शनैश्चर रोहिणी नक्षत्रमें मंगलको थे। और इस इस गतिसे हमने भारती पीड़ा दे रहा है। ज्येष्ठा नक्षत्रमें मंगल युद्धका जो समय वैदिक कालीन शनपथ वक्र होकर अनुराधा नामक नक्षत्रसे ब्राह्मणके पहले बतलाया है, उसका सम मिलना चाहता है। महापात संशक ग्रह र्थन हो जाता है। चित्रा नक्षत्रको पीड़ा दे रहा है । चन्द्रके चिह्न बदल गये हैं और राहु सूर्यको ग्रहस्थितिके आधार पर युद्धका ग्रसित करना चाहता है।” (उद्योग० अ० समय निकालनेका प्रयत्न ।। १४३) इसके बाद श्रीकृष्ण वापस चले गये और दुर्योधनने अपनी सेना एकत्र अब अंतमें हमारे लिये यह देखना कर पुष्य नक्षत्रके मुहूर्तमें कुरुक्षेत्रकी बाकी रह गया है कि, युद्धकालकी ओर प्रस्थान किया । उस दिन कार्तिक ग्रहस्थितिका जो वर्णन महाभारतमें, बदी षष्ठी रही होगी। पाठकोको ध्यान विशेषतः उद्योगपर्वके अन्त ओर भीष्म- रखना चाहिये कि कार्तिकमें पुष्य नक्षत्र पर्वके प्रारम्भमें पाया है, उसके आधार | बहुधा बदी षष्ठी या सप्तमीको ही आता पर परलोकवासी मोडकने भारती युद्ध है। इसके पहलेके १४२वें अध्यायके अन्त- काल बतलानेका जो प्रयत्न किया है, वह में श्रीकृष्णने कर्णसे कहा है-"कीचड़ कहाँ तक सफल हुआ है। इसीके साथ साफ हो गया है और जल बहुत रुचिर भारतीय युद्धकी जन्त्री, अर्थात् मितिवार हो गया है। हवा भी न तो अति उष्ण है घटनाओं आदि दूसरी बातोंका भी विचार ! और न अति शीत है। यह महीना सभी कर लेना चाहिये । इसके लिये उन सब तरहसे सुखदायक है। आजसे सात वचनोंको यहाँ एकत्र करना पड़ेगा जो दिनोंमें अमावस्या होगी। अमावस्याके इस विषयमें महाभारतमें भिन्न भिन्न देवता इन्द्र हैं। युद्ध प्रारम्भ करनेके लिये खानों में कहे गये हैं, जिसमें इन बातोंका यह अनुकूल स्थिति है। अमावस्याको ही विचार सभी दृष्टियोंसे ठीक ठीक किया युद्ध का प्रारम्भ होने दो।" इससे मालम जा सके । पहली बात यह है कि जब श्री- होता है कि जिस दिन श्रीकृष्ण गये, उसी