पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१५१

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9 भारतीय युद्धका समय # महीने अधिक तो हो ही चुके थे, परन्तु गर्भवती होगी। आगे फागुनमें उसका भागे और भी १ महीना तथा १२ रात्रियाँ प्रसव हुा । उस समय मरा हुआ लड़का बढ़ गई। अर्थात, भीष्मने यह निर्णय पैदा हुआ। गर्भधारणके समय पतिकी किया कि चान्द्र मानसे पाण्डवीक तरह मृत्युके दुःखसे एसा हो जाना सम्भव है। वर्ष पूरे हो चुकं । सबका सार यह है कि उस मृत बालकको श्रीकृष्णने अपने दिव्य जूना आश्विन बदी अष्टमीको सौर वर्षमै प्रभावसं जिला दिया। उस समय पाण्डव हुआ था। उसके बाद १३ वर्षोंमें चान्द्र हस्तिनापुरमें न थे व द्रव्य लानके लिये मास पीछे हटकर चान्द्रमानके तेरह वर्ष हिमालय गये थे। उनके वापस आने ग्रीष्ममें ही पूरे हो गये । चान्द्रमानके पर कहा गया है कि चैत्रकी पौर्णिमाको तेरह वर्ष सौर ज्येए बदी सप्तमीको पूरे युधिष्ठिरनं अश्वमेधकी दीक्षा ली। यह भी हो गये। उसी दिन सुशर्माने दक्षिणमें कहा गया है कि इसके लगभग एक गांग्रहण किया: और अष्टमीको कौरवों- महीनो पहले परीक्षितका जन्म हो चुका ने उत्तरमें गांग्रहण किया । इससे यही था । अर्थात् उसका जन्म फागुनमें हुआ। मल ठीक होता है कि ज्येष्ठ बदी अष्टमो- यह वर्णन पाया जाता है कि वह कम को अर्जुन पहचाना गया और दशमीको दिनोंमें अर्थात् उचित समयके पहले पाण्डव योग्य रीतिसं विगट सभाम(छः महीनमें) हुआ: अतएव उसके माता- प्रकट हुए । आजकल महाभारतमें केवल पिताका ब्याह कमसे कम आषाढमें हुआ सप्तमी-अष्टमीका उल्लेख है, महीनका । होगा। इस क्रमस गांग्रहणका महीना उल्लेख नहीं है। इसी कारण यह भ्रम जंठ ही निश्चित होता है। चतुर्धर टीका- उत्पन्न होता है। कारने पाण्डवोंके प्रकट होनका जो समय इसके आगेकी घटनाको मितिकं साथ चैत्र बदी १० बतलाया है, वह गलत है। मिलाना चाहिये । इसके आगे विराट- पहली बात यह है कि ग्रीष्म ऋतु होनेका नगरमें उत्तरा और अभिमन्युका जो स्पष्ट वचन रहने पर गांग्रहणका चैत्रमें विवाह हुआ, वह आषाढ़ सुदी ११ तक होना नहीं माना जा सकता । दूसरी बात हुआ होगा । श्रीकृष्ण, अभिमन्यु श्रादिके यह है कि चतुर्धरने अन्दाजस जो लिखा द्वारकासे आने पर यह विवाह हुआ। है कि जत्रा आश्विनमें हुआ, वह ठीक है। इसके बाद सब लोग एकत्र होकर, तब चैत्रसे छः महीने ही होते हैं। दुर्यो- उपलव्य नामक एक सीमा-स्थान पर धनकी समझके अनुसार अज्ञातवासका रहकर, युद्ध-सामग्रीका संग्रह करने आधा ही समय बीता था-इससे कुछ लगे । कार्तिक सुदामें श्रीकृष्ण राजदत अधिक समय नहीं बीता था । ऐसी दशामें मानकर सुलह ( सन्धि) की शर्ते तय दुर्योधनके इस कथनसे विरोध होता है मरने गये । उन्हें सफलता न हुई। मार्ग- कि प्रायः अधिक समय बीत चुका। इसके श्रीर्ष सुदी तेरसको युद्ध प्रारम्भ हुश्रा सिवा, पाँच महीने भी अधिक मासके ही और वह अठारह दिनोंतक चला । उसमें जाते है और भीष्मके वचनसे मिलान नहीं अभिमन्यु मारा गया। विवाहकं समय होता। सब बातोंका विचार करने पर उत्तरा सयानी थी, अतएव उसे गर्भ रह जएकी मिति आश्विन बदी अष्टमी और जाना सम्भव है। अपने पनिक युद्धमै पागवीके प्रकट होनको मिति ज्येष्ठ बदी मरनक समय वह तीन चार महीनोंकी अष्टमी ही ठीक मालम होता है। स्त्रीपर्वक