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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१५५

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ॐ भारतीय युद्धका समय * १२६ तड़के चन्द्रोदय होनेका वर्णन है । यदि गई । तात्पर्य यह है कि जयद्रथवधके समय मान लिया जाय कि यह तिथि एक दो सूर्यग्रहणका होना ठीक नहीं मालूम होता; दिन आगे पोछकी भी होगी, और यह भी | परन्तु यह कल्पना केतकर नामक प्रसिद्ध मान लें कि उस दिन (जयद्रथ-वधके ज्योतिषीके द्वारा की गई थी,अतएव उसका दिन अमावस्या थी.तो एक ही वर्ष में उल्लेख यहाँ करना आवश्यक मालमत्रा लगातार दोमहीनोंमें अर्थात् कार्तिक अमा- (दीक्षितकृत भारतीय ज्योतिषशास्त्र, पृष्ठ वस्याको और मार्ग-शीर्ष अमावस्याको १२४) । तात्पर्य, इस बातको निश्चयात्मक सूर्यग्रहण होना सम्भव नहीं है । तब प्रश्न और संशयरहित माननेमें कोई हर्ज नहीं, होता है कार्तिक बदी अमावस्याके सूर्य- कि भारतीय युद्धके वर्षमें कार्तिक बदी प्रहणको सचा मानना चाहिये, या मार्ग- अमावस्याको सूर्यग्रहण हुआ था। अब शीर्षकी अमावस्याके ग्रहणको सच्चा सम- हम यह विचार करेंगे कि इस बातका उप- झना चाहिये ? कार्तिक महीनेका ग्रहण योग काल-निर्णयके काममें कैसे होता है। स्पष्ट शब्दोंमें बतलाया गया है, इसलिये हमारे सामने भारती युद्धके मुख्यतः उसीको सच्चा मानना ठीक है । मार्गशीर्ष- तीन समय उपस्थित है:-(१) सन ईसवी- का ग्रहण कल्पनाप्रसूत है। इसके सिवा के पहले ३१०१ वर्षः युद्धका यह समय यदि जयद्रथवध-प्रसङ्गमें ग्रहणसे सूर्यका लोकमतके अनुकूल है । (२) गर्ग, वराह- लोप हो गया हो, तो श्रीकृष्णकी मायाका मिहिर और तरंगिणीकारके द्वारा माना महत्त्व ही क्या रह गया ? ग्रहण खग्रास हुआ शक पूर्व २५२६ वर्ष; (३) श्रीयुत भी होना चाहिये: उसके बिना अन्धकार : अय्यरका बतलाया हुश्रा सन् ईसवीके पूर्व नहीं हो सकता। तीसरे यह पहले ही ३१ अक्टूबर ११६४ । हमने इसके सम्बन्ध मालम रहना चाहिये कि ग्रहण होनेवाला में गणित करके देख लिया है, कि इन है । कदाचित् यह कहा जाय कि पूर्वकालमें तीनों ममयोंके वर्षों में कार्तिक बदी अमा- ऐसा शान न था: परन्तु यह स्पष्ट है कि वस्याको ग्रह-स्थिति कैमी थी और सूर्य- ऐसा होता तो दोनों पक्ष घबरा जाते; और ग्रहण हुश्रा था या नहीं। विक्टोरिया अर्जुन तथा श्रीकृष्णको भी भ्रान्ति होनी कालेज, ग्वालियरके प्रोफेसर आपटेने चाहिये थी कि अर्जुनकी प्रतिज्ञा व्यर्थ हो इसके अङ्क भी दिये हैं। वे इस प्रकार है:- सूर्य... ... कार्तिक वदी ३० शुक्रवार शक ३१८० __ अंश नक्षत्र ... २३४ ५ ६' २" ज्येष्ठा ...२२५ ३२ ५२ अनुराधा अथवा ज्येष्ठा शुक्र... ....२१८ २६ ३४" अनुराधा मङ्गल... ....२५८३६४३" पूर्वाषाढ़ा अथवा उत्तराषाढ़ा गुरु... ....३५०° २२ २२" रेवती ___...३१४° ५५' " शततारका राहु... ... ...२३५°१ २६" ज्येष्टा (सूर्यग्रहण अवश्य हुश्रा । पहलेकी पौर्णिमाको चन्द्रग्रहण नहीं था।) शनि... ... ....