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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा

अंश कार्तिक बदी अमावस्या कार्तिक बदी अमावस्या शुक्रवार शक २५२७ रविवार शक १२७१ ग्रह अंश नक्षत्र नक्षत्र सूर्य... .. ...२१२° ४' ५ः" विशाखा २३१ १३' ३७" ज्येष्ठा धुध . ... . .२१४० २७' ५७" अनुराधा २४६° ४१ ४६" मूल शुक्र... .. २५५° ५८' २६" पूर्वाश्र.उ.षाढा २३३ १८५७” ज्येष्ठा मङ्गल... ... ...२६ २६ "धनिष्ठाश्र.शतता.२५१ ३५' २४" मूल गुरु... . १३° ४२ १०” भरणी ३२२° ५२' १२"पूर्वाभाद्रपदा शनि... ... ... २४ १५' ३" भरणी २५३' ५४' २७" पूर्वाषाढ़ा राहु... . . .१६२° ४३' ५:” हस्त ' ५' २५" पुनर्वसु (इन दोनों वर्षोंमें सूर्य-ग्रहण अथवा चन्द्र-ग्रहण होना सम्भव नहीं है।) हम समझते हैं कि सूर्य ग्रहणका यह निश्चित संख्या बतलानेवाले नहीं हैं । प्रमाण अत्यन्त प्रवल है। भारतीय युद्धके और, चन्द्रगुप्तका सन ईसवीसे पूर्व ३१२ पहले सूर्यग्रहण होनेकी बात मूल भारत- का समय भी गणितके निश्चयका नहीं है। की है। वह कुछ सौतिके समयकी नहीं इसलिये हमने इन चौंका गणित नहीं है। अतएव वह अत्यन्त प्राचीन भारत- कराया और इस कारण हम निश्चय- कालीन है। खैर, उसे किसी समयकी पूर्वक नहीं बतला सकते कि इन वर्पोम मान लें, तो भी वह उस समयकी है जब मूर्यग्रहण हुआ या नहीं। कि भारतवासी ग्रहगणित करना नहीं यह श्राक्षेप हो सकता है कि भारती आनते थे। वह दन्तकथाकी परम्पगमे युद्ध के पहले जो सूर्यग्रहणकी घटना बत- मशहूर चली आई होगी: अतएव वह | लाई गई है, वह निश्चयात्मक नहीं है : विश्वसनीय है। इस दृष्टिमे गणित करके वह वैसी ही बात है जैसी कि सौतिके देखने पर यही कहना पड़ता है कि पहला द्वारा अनेक प्रसङ्गों पर अरिएसूचक अशुभ सर्वमान्य समय सिद्ध है: और वराह, चिह्नोंके तौर पर बतलाई गई है। इस गर्ग अथवा बिल्हणका बतलाया हुआ आक्षेपका निरसन होना कठिन है, क्योंकि समय तथा श्रीयुत अय्यरका निश्चित हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा, कि उस किया हुश्रा समय सिद्ध नहीं होता । समय कर्णने और विशेषतः व्यासने कुछ चौथा समय, जो पुराणोंके आधार पर अरिष्ट-सूचक चिह्न कल्पनासे बतलाये हैं। बतलाया गया है, गणित करनेके लिये इस प्रकारकी धारणा सभी समयमें प्रच- उपयोगी नहीं है ; कयोंकि वह स्थूल है, लित रहती है। वह महाभारतके रचना- और उसमें निश्चित वर्ष नहीं बतलाया कालमें भी प्रचलित रही होगी। ज्योति- गया है । हमने मान लिया है कि यह षियोंके ग्रन्थों में इस बातका उल्लेख रहता समय सन् ईसवीके लगभग १४२५ वर्ष था कि अशुभ-सूचक भिन्न भिन्न ज्योति- पूर्व है; परन्तु यह मोटा हिसाब है, विषयक बाते कौन कौन हैं। यह सच है कि क्योंकि परीक्षितसे नन्दतक १०१५ वर्ष सूर्यग्रहण भी उनमेंसे एक है। परन्तु यह भी और १११५ वर्ष भी बतलाये गये हैं। नव- स्पष्ट है कि इस तरहकी विचारशैलीसे नन्दके १०० बर्ष भी स्थूल मानके हैं- कही पैर रखने के लिये भी जगह न मिलेगी।