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महाभारतमीमांसा
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- - जिस समय ज्येष्ठा नक्षत्र थे, उस समय श्रवणमें आ गया है। और, शनैश्चर भग रोहिणी पर उनकी पूर्ण दृष्टि थी। अर्थात्, (उत्तरा) नक्षत्रका पीड़ा दे रहा है।" यह स्पष्ट है कि वे रोहिणीको पीड़ा अर्थात् , यही देख पड़ता है कि तीनो प्रह देते थे। वेधसे तीन नक्षत्रोंको पीडा दे रहे हैं। "मघास्वंगारको वक्रः श्रवणेच बृहस्पतिः" अब हम शुक्रके सम्बन्ध विचार करेंगे। ___ इस वाक्यका अर्थ ऐसा ही होता है। यहाँ कहा गया है कि “शुक्र पूर्वाभाद्रपदामें कर्ण कहता है कि अनुराधा पर मङ्गल आकर चमक रहा है।" शुक्र सूर्य के प्रागे- वक्र गतिसे है। अर्थात उसकी दृष्टि पीछे पीछे पासमें ही रहता है। जब सूर्य ज्येष्ठा- सातवे नक्षत्र-मघा-पर जाती है। में है तो शुक्र पूर्वाभाद्रपदामें नहीं रह मालकी यह दृष्टि पूर्ण समझी जाती है। सकता। वह उत्तगमें रहा होगा और बृहस्पति विशाखामें है और उसकी दृष्टि वहाँसे उसका वेध पूर्ण दृष्टिसे पूर्वाभाद्र- आगे सातवें मक्षत्र-श्रवण-पर जाती पदा पर पहुँचता है। इन भिन्न भिन्न है। सारांश, व्यासका उक्त वाक्य ठीक दृष्टियोंसे वेध किये हुए नक्षत्र प्राण मालूम होता है। फिर आगे व्यासने अथवा जीवितके अभिमानी हैं : और उन मङ्गलको चक्रानुवक्र करके श्रवण पर बत- नक्षत्रों पर दुष्ट दृष्टि हो जानेके कारण लाया है। अर्थात् , अनुराधामे विशाखा- प्राणियों का नाश होगा। यह बात उस तक वक्रगतिसे जाकर मङ्गल वहाँ सीधा समयके ज्योतिष-ग्रन्थों में कही गई है हो गया, इसलिये उसकी चतुर्थ (मङ्गल- और उसीको टीकाकारने उद्धृत किया की पूर्ण) दृष्टि सातवें नक्षत्र-श्रवण- है। उदाहरणार्थ, रोहिणी नक्षत्र प्रजा- पर गई । इस तरहसे मङ्गलके तीनों ग्रहों- पतिका है और उस पर सूर्य, चन्द्र (अमा- का स्पष्टीकरण हो जाता है। अब हम शनि- वस्याका), गहु और शनिकी दृष्टि पड़ी के विषयमें विचार करेंगे । व्यास शनिको है अर्थात् प्रजाका नाश होगा। टीका- विशाखाके पास बतलाते हैं। 'समीपस्थ कारने इस तरहके वचन कई ग्रन्थोसे है इन शब्दोंसे समझना चाहिये कि वह दिये हैं। हमारे मतसे यह ग्रहस्थिति यहीं है। शनि गहिणीको पीड़ा दे रहा कल्पित है। साथ ही ध्यान देने योग्य है और वह विशाखासे १६ वाँ होता है। दूसरी बात यह भी है कि वह गणित यह दृष्टि अर्थात् : की है। उसी तरह करनेके लिये उपयोगी नहीं है, क्योंकि शनि भग नक्षत्रको पीड़ा दे रहा है और उसमें निश्चित अंश नहीं हैं। वह नक्षत्र २४ वाँ होता है। वहाँ दृष्टि इस तरहसे (शनिके सिवा ) सारी २४ अथवा होती है। भग नक्षत्रको ग्रहस्थिति भिन्न भिन्न नक्षत्रों पर वेधकी श्रुतिमतके अनुसार “उत्तरा" मानना दृष्टिसे ठीक समझाई जा सकती है। चाहिये। टीकाकार भी ऐसा ही कहता तथापि हम यह नहीं कहते कि युद्धकाल- है। [भीष्म अ० ३१.१४] यह दृष्टि आधु- में इस ग्रहस्थितिको प्रत्यक्ष देखकर युद्ध- निक ज्योतिषमें नहीं मानी गई है, परन्तु के समय ही वह महाभारतमें लिखी गई गर्गके समयमें मानी जाती होगी। व्यासके है। वह इतनी अनिश्चित है कि गणितकी वाक्यमें जो बात कही गई है उसका अर्थ रीतिसे उसके द्वाग समय ठहराना वेधके द्वारा ही लगाना चाहिये । “मङ्गल सम्भव ही नहीं है । इस बातको दीक्षितने वक होकर मघामें आ गया है। बृहस्पति भी स्वीकार किया है। सागंश यह है कि