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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१६३

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8 भारतीय युद्धका समय 8 १३७ मोड़कका बतलाया हुश्रा समय तो मान्य मृग नक्षत्र में था। फिर यह एक गूढ़ बात समझा जाता है ही नहीं : परन्तु यह है कि ऊपरके वाक्यमें 'मधा कैसे कहा प्रहस्थिति युद्धका समय ठहरानेके लिये गया। यह भी आश्चर्यकी बात है कि अन्य रीतिसे निरुपयोगी है। हमने पहले दिनको सूर्यके उदित होने पर सात ग्रह ही बतला दिया है कि उसकी कल्पना दीप्यमान आकाशमें देख पड़ने लगे । कैसे की गई है। सूर्यके तेजसे कोई आदमी ग्रह नहीं देख ___इस प्रकार, भिन्न भिन्न मतोंके अनु- सकता । तो फिर इस श्लोकको कृट श्लोक सार बतलाये हुए भारती-युद्धके समयके मानना चाहिये अथवा कहना चाहिये कि सम्बन्धमें विचार करने पर हमारा मत इसमें आश्चर्यकारक बातें, असम्भव होने है कि सामान्यतः सभी ज्योतिषियोंके पर भी, भर दी गई हैं। टीकाकारने इसे द्वारा माना हुश्रा और आस्तिक मतसे कृट माना है। उन्होन "मघाविषयगः" का ग्रहण किया हुआ सन् ईसवी के पूर्व अर्थ किया है कि मघाका देवता पितृ है: ३१०१ वर्षका समय ही ग्राहा ठहरता है। उनका विषय पितृलोक, यमलोक अथवा भारती-यद्धके सम्बन्धमें वर्णन करते चन्द्रलोक है: और चन्द्र मृगका देवता है: समय ज्योतिष-विषयक अन्य अनेक इसलिये चन्द्रमा मृगमें था। परन्तु यह उल्लेख आये हैं । इस प्रकरणमें उनका भी केवल दाँव पंच है। इस तरहसे श्लोकका विचार हो सकता है, अतएव अब हम ठीक अर्थ नहीं लगता। युद्धके प्रारम्भमें उनका विचार करेंगे। भारती युद्धके कृत्तिका नक्षत्र हो सकता है। यदि ज्येष्ठा प्रारम्भ होनेके दिन- नक्षत्रके सूर्यग्रहणके अनन्तर १३ दिनोंमें मघाविषयगस्सोमस्तहिनं प्रत्यपद्यत।। । युद्धका होना मान लिया जाय, तोज्येष्ठासे दीप्यमानाश्च सम्पेतुर्दिवि सप्त महाग्रहाः। कृत्तिका नक्षत्र १३ वाँ होता है। श्रवणसे ____ यह श्लोक कहा गया है । इसका कृत्तिकाका स्थान पीछेकी ओर २० वाँ विचार पहले होना चाहिये । कार्तिक होता है, इसलिये कह सकते हैं कि १८ बदी अमावस्याको सूर्यग्रहण हुश्रा, अतएव दिनोंमें २० नक्षत्रोंका होना सम्भव है। और, सूर्य और चन्द्र ज्येष्ठा नक्षत्र पर थे। तात्पर्य यह होगा कि कृत्तिकासे मघा पर आगे यदि ऐसा मान लें कि मार्गशीर्ष चन्द्रमाकी दृष्टि सात नक्षत्रोंकी होती सुदी त्रयोदशी अथवा पौर्णिमाको युद्ध है, पितृदेवता मघा है, उस पर युद्धके शुरू हुआ, तो १३-१४ दिनोंमें चन्द्रमा प्रारम्भमें दृष्टि होना बुरा है । हमारे मघा पर नहीं जा सकता। तेरह चौदह मतानुसार यहाँ इस दृष्टिको ही मघा पर दिनोंमें रोहिणी-मृग नक्षत्र पाता है। वहाँसे समझना चाहिये। यदि ऐसा मान लें मघा पाँच नक्षत्रोंके आगे है । युद्धके कि सात दोप्त ग्रहोंका निकलना सम्भव अन्तिम दिन बलराम कहते हैं कि वे वहाँ होनेके लिये सूर्य पर काला आवरण पड़ श्रवण नक्षत्रमें पहुँचे । अर्थात् श्रवणके गया था, तो इन सातो ग्रहोंको उदित पीछे अन्दाजसे १८ नक्षत्र लेने पर भी भागमें होना चाहिये था। सातों से पहले मृग नक्षत्र ही आता है-मघा नहीं पाता। तो सूर्यकी ही कमी देख पड़ती है । सुदी मघासे श्रवण १२ नक्षत्रोंकी ही दूरी पर त्रयोदशीको चन्द्रमाका सूर्योदयके समय है। इसलिये अगले पिछले वाक्योंसे ऊपर रहना सम्भव नहीं है। वह सम्भ्या मालूम होता है कि युद्धारम्भमें चन्द्रमा समय थोड़ासा दिखने लगेगा, प्रातःकाल