पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१६५

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में भारतीय युद्धका समय : १३६ होना समझकर वह भीष्मके पास जानेके शासन पर्वके ही झूठ है । यहाँका विरोध लिये रवाना हुश्रा । यहाँ यह कहा गया अपरिहार्य है। है कि भीष्मके पाससे वह युद्ध समाप्त महाभारतमें भिन्न भिन्न स्थानों में जो होने पर वापस गया था। जब वह ५० अंक-संख्या दी हुई मिलती है, उसके बारे- रात्रियाँ व्यतीत कर चुका, तब बाणशय्यामें में बहधा यही कहना पड़ता है कि उसमें भीष्मकी ५% रात्रियाँ ही व्यतीत होनी कुछ न कुछ गूढ़ अथवा गुह्य अर्थ है। चाहिये, ४२ नहीं हो सकतीं। तो फिर यहाँ जैसे ५० और १८ का अर्थ नहीं यह कैसा विरोध है ? इसका परिहार निकलता, उसी तरह हम पहले बतला होना बहुत करके असम्भव ही है। यदि चुके हैं कि अर्जुनके गांडीव धनुष्य धारण युद्धको मार्गशीर्ष में ही प्रारम्भ हुआ न करनेके सम्बन्धमें कही हुई ६५ की संख्या- मानकर, श्रीकृष्णके कथनानुसार कार्तिक की उपपत्ति नहीं लगती। वर्षका अर्थ अमावस्थाको मान लें, तो सभी गड़बड़ हो बरसात मानकर जाती है। भीमके दिनोंका ठीक ठीक पता बार बरसातका होना ( एक बड़ी और तो लगता ही नहीं, क्योंकि इस हिसाबसे दूसरी छोटी हेमन्तमें ) मानकर, टीका- ६४ दिन आते हैं और जयद्रथवध- कारने यहाँ ६५ का आधा किया है। इसी की रातको चन्द्रमा सवेरे उदय नहीं हो तरह अधिक मासका हिसाब लगाते सकता । उस दिन बहुत करके सुदी समय, प्रत्येक पाँच वर्षोंमें दो महीने प्रयोदशी अथवा पौर्णिमा पड़ती है अर्थात् जोडनेकी रीतिसे तेरह वर्षों में, भीष्मके सवेरे चन्द्र के अस्त होकर अँधेरा होनेका वचनके अनुसार, पाँच महीने और १२ समय था ! मार्गशीर्ष सुदी अष्टमीको गत्रिकी संख्या टीक नहीं जंचती । पाँच युद्धारम्भका दिन माननेस ५८ दिन तो वर्षों में दो महीने,तो १३वर्षों में १३४२.. आ जाते हैं, परन्तु उस दिनके नक्षत्रसे १८ वे दिनको बलरामके कथनानुसार ५, अर्थात् ५ महीने और ६ दिन होते श्रवण नक्षत्र नहीं होगा । सूर्यग्रहण ज्येष्ठा है। परन्तु यहाँ भीष्म कहते हैं कि- नक्षत्र में अमावस्याको हुा । उस कातिक त्रयोदशानां वर्षाणां पञ्च च द्वादश क्षपाः। बदी ३० से आठवे दिन युद्धका आरम्भ यह क्या बात है ? बारह रात्रिका अर्थ होना माना जाय, तो पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र दिन लगा लेना सम्भव है, परन्तु इसमें आता है और वहाँसे युद्धके अन्तमें १८ वाँ: सार कुछ नहीं है। नक्षत्र विशाखा होगा। यह सब गड़बड़ आदि० अ०६१-४२ में अर्जुनके पहले अनुशासन पर्वके,५गत्रि और ५० गत्रि- वनवासके सम्बन्धमें यह श्लोक है:- सम्बन्धी वचनोंने किया है । माघ बदीमें शुक्लपक्ष पञ्चमी तक मान सकते हैं, परन्तु सवै संवत्सरं पूर्ण मासं चैकं वने वसन् ॥ त्रिभागशेष पक्ष नहीं कहा जा सकता। अर्जुन द्वारकाको पाया और सुभद्रा- मोटे हिसाबसे अट्ठावन गत्रिके दो महीने से ब्याह हुश्रा; परन्तु आगे कहा गया है होते हैं। इसलिये माघ बदी अष्टमी ही कि यह वनवास बारह वर्षोंका था। तो आवेगी। किसी एकको झूठ मानना ही फिर ऊपरके वाक्यमें एक वर्ष और एक पड़ेगा। यही मानना पड़ेगा कि या तो मास कैसे कहा गया है ? इस बातकी युद्ध पर्वके वचन झठ हैं, नहीं तो अनु- ! कठिनाई टीकाकारको भी हुई है। उन्होंने